अमेरिकी बाजार: ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारी उतार-चढ़ाव, अप्रैल 2025 के क्रैश के बाद रिकॉर्ड ऊंचाइयां
अप्रैल 2025 का झटका, फिर नई रफ्तार: छह महीने जिन्होंने वॉल स्ट्रीट को बदल दिया
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत ने अमेरिकी बाजार को झकझोर भी दिया और नई ऊर्जा भी दी। जनवरी 2025 की शपथ से पहले ही ट्रेडिंग स्क्रीन पर बेचैनी साफ दिखने लगी थी—टेक शेयर दबाव में, स्मॉल-कैप फिसलते हुए, और निवेशक हर बयान का मतलब तलाशते हुए। बात यहीं नहीं रुकी। 2 अप्रैल 2025 को आया “लिबरेशन डे” बाजारों के लिए किसी आपातकाल जैसा साबित हुआ। और ठीक एक हफ्ते बाद आई पलटी—नीतियों में नरमी का संकेत—जिसने वॉल स्ट्रीट को धमाके के साथ वापसी का मौका दिया। जून के आखिरी हफ्ते में S&P 500 और नैस्डैक नए रिकॉर्ड पर बंद हुए।
यह सिर्फ एक उतार-चढ़ाव वाला तिमाही चार्ट नहीं है। यह उस सवाल का जवाब भी है जो हर निवेशक पूछ रहा था—नीतियां, खासकर व्यापार और टैरिफ, बाजार को कितनी दूर तक हिला सकती हैं, और कितनी तेजी से वापसी संभव है। 2025 ने यही दिखाया: शॉर्ट-टर्म में शोर बहुत है, लेकिन लंबी दौड़ अब भी आय, मांग और तरलता तय करती है।
शपथ से पहले के हफ्तों में संकेत उलझे हुए थे। नैस्डैक 100 ने नवंबर के बाद सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट दर्ज की, करीब 2.34% नीचे। रसेल 2000 पहले से करेक्शन में था, मतलब छोटे कारोबार और हाई-बीटा शेयर दबाव झेल रहे थे। निवेशक मान रहे थे कि शायद नई सरकार व्यापार मोर्चे पर थोड़ी नरमी दिखाएगी, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस और सोशल मीडिया संकेतों ने कहानी बदल दी—ग्रोथ शेयरों से फंड निकलने लगे और वैल्यू, डिफेंसिव और डिविडेंड थीम को सहारा मिला।
2 अप्रैल 2025 को ट्रंप ने व्यापक टैरिफ का एलान किया—चीन के साथ तनाव बढ़ा, कनाडा और मेक्सिको के साथ नई खींचतान का संकेत, और कई सेक्टरों पर भारी आयात शुल्क। नतीजा: वैश्विक बाजारों में पैनिक सेलिंग। S&P 500 दो सत्रों में 10% से ज्यादा टूटा और करीब 7 ट्रिलियन डॉलर की वैल्यू मिट गई। यह कोविड-19 के बाद सबसे बड़ा वैश्विक झटका माना गया। शुरुआती मिनटों में बॉन्ड में शरण मिली, पर जल्दी ही वहां भी बिकवाली शुरू हुई—यही ‘बॉन्ड विजिलेंटिज्म’ कहलाता है, जब बाजार खुद ऊंचे घाटे या महंगाई के जोखिम पर बॉन्ड यील्ड ऊपर धकेल देते हैं।
टैरिफ का मतलब लागत बढ़ना—कच्चा माल महंगा, सप्लाई-चेन उलझी, और आयात पर निर्भर सेक्टरों का मार्जिन दबाव में। यही वजह रही कि ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, सेमीकंडक्टर सप्लाई-चेन और रिटेल जैसे हिस्से सबसे पहले टूटे। एक्सपोर्ट-हैवी कंपनियों को भी दिक्कत हुई—प्रतिशोधी टैरिफ का डर और डॉलर की चाल दोनों साथ में काम करते हैं। वहीं घरेलू-केंद्रित कंपनियों में मिलाजुला असर दिखा—कुछ को मूल्य निर्धारण की ताकत मिली, कुछ को मांग की मार।
9 अप्रैल को तस्वीर पलटी। व्हाइट हाउस से टैरिफ बढ़ोतरी रोकने और बातचीत आगे बढ़ाने के संकेत मिले। रैली उसी वक्त शुरू हो गई—वो तेज और चौड़ी थी। हाई-बीटा, टेक और स्मॉल-कैप में शॉर्ट कवरिंग दिखी, जबकि क्वालिटी और कैश-रिच बैलेंस शीट वाले नामों में फंड फ्लो वापस लौटा। 13 मई तक S&P 500 साल-दर-साल फिर से पॉजिटिव हो गया। 27 जून को S&P 500 और नैस्डैक ने ऑल-टाइम हाई छुआ। शपथ के छह महीने के अंदर यह यू-टर्न अपने आप में अनोखा रहा।
अगस्त 11, 2025 तक तस्वीर यह रही—वसंत की उथल-पुथल के बावजूद S&P 500 YTD 8.4% ऊपर। यह सुस्त नहीं है, लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल की तुलना में यह रफ्तार कम दिखती है। तब चार साल में S&P 500 ने लगभग 68% दिया था—1980 के बाद किसी राष्ट्रपति कार्यकाल के टॉप-5 रिटर्न में। तुलना में, जो बाइडेन के जनवरी 2025 में खत्म हुए चार साल में S&P 500 ने करीब 57.85% बढ़त दी। सालाना आधार पर ट्रंप का पहला कार्यकाल 13.6% के औसत वार्षिक रिटर्न के साथ बराक ओबामा (12.8%) और बिल क्लिंटन (15.0%) के बीच बैठता है।
टेक सेक्टर इस पूरे दौर का सबसे बड़ा स्टोरीबोर्ड रहा—पहले झटका, फिर जोरदार रिवर्सल। अप्रैल से पहले AI ट्रेड पर सवाल उठे, खासकर तब जब डीपसीक ने बिग-टेक की AI बढ़त को चुनौती देने का शोर किया। वैल्यूएशन फिर से जांचे गए—क्या मार्जिन टिकेंगे? क्या कैपेक्स का रिटर्न समय पर आएगा? अप्रैल के झटके ने यह सब तेज कर दिया। लेकिन रैली के दौरान वही कंपनियां आगे निकलीं जिनके पास कैश फ्लो, प्राइसिंग पावर और इकोसिस्टम थे—क्योंकि अनिश्चितता में बाजार पहले गुणवत्ता खरीदता है।
फेडरल रिजर्व पूरे समय फ्रेम में बैकड्रॉप की तरह रहा—ना बहुत आक्रामक, ना बहुत ढीला। जॉब डेटा मजबूत रहा, बेरोजगारी दर काबू में रही, पर टैरिफ-जनित महंगाई का खतरा यील्ड में दिखा। ट्रेजरी यील्ड ऊपर सरकते रहे—इसका मतलब इक्विटी की वैल्यूएशन पर डिस्काउंट रेट भी बढ़ा। यही वजह है कि लंबे समय तक ‘लंबी अवधि की ग्रोथ’ कहे जाने वाले शेयरों में नंबरों की मांग बढ़ गई—केवल कहानी नहीं, कमाई चाहिए थी।
कमाई के मोर्चे पर Q1 और Q2 ने राहत दी। कई बड़ी कंपनियों ने गाइडेंस में सतर्कता दिखाई, लेकिन अधिकांश ने लागत पर कंट्रोल और प्राइसिंग पावर से मार्जिन बचाए। कंज्यूमर स्पेंडिंग अलग-अलग आय समूहों में अलग दिखी—ऊपरी आय वर्ग ने खर्च जारी रखा, जबकि मध्यम-निम्न आय समूह में कीमतों की चुभन महसूस हुई। रिटेल में ‘ट्रेड-डाउन’ ट्रेंड दिखा—लोग प्रीमियम से वैल्यू ब्रांड की ओर शिफ्ट हुए, जिससे डिस्काउंट रिटेलरों को सहारा मिला।
मार्केट स्ट्रक्चर की बात करें तो इंडेक्स की टॉप-हैवी प्रकृति फिर से चर्चा में आ गई। कुछ मेगाकैप स्टॉक्स का वजन इतना ज्यादा है कि उनका मूड पूरे इंडेक्स की चाल तय कर देता है। ये कंपनियां AI, क्लाउड, एडवरटाइजिंग और कंज्यूमर टेक में गहरी पकड़ रखती हैं, इसलिए हर नीति बदलाव—टैरिफ, डेटा नियम, निर्यात नियंत्रण—का असर तुरंत इनके वैल्यूएशन पर दिखता है। ब्रीड्थ में कमी रही, यानी इंडेक्स के नए हाई पर जाने के बावजूद सभी सेक्टर या सभी स्टॉक्स साथ नहीं भागे।
स्मॉल-कैप्स ने मुश्किल क्यों झेली? वजहें साफ हैं—महंगे कर्ज, सप्लाई-साइड झटकों से लागत, और प्राइसिंग पावर की कमी। जब बॉन्ड यील्ड चढ़ती है, छोटे कारोबारों के लिए फंडिंग महंगी हो जाती है। दूसरी तरफ, टैरिफ का फायदा कुछ घरेलू कंपनियों को मिला—इंपोर्ट की प्रतिस्पर्धा कम होने से वे कीमतें टिकाए रख पाईं—पर यह तस्वीर सेक्टर-दर-सेक्टर बदलती रही।
कमोडिटी और करेंसी ने भी कहानी में मसाला डाला। औद्योगिक धातुओं में अस्थिरता रही क्योंकि टैरिफ से कुछ बाजार बंद जैसे लगने लगे। कच्चा तेल मांग-आपूर्ति और भू-राजनीति से ज्यादा प्रभावित रहा, लेकिन टैरिफ बहस ने रिफाइनिंग और केमिकल कंपनियों के स्प्रेड पर असर डाला। डॉलर की चाल दोधारी रही—कभी सेफ-हेवन की वजह से मजबूत, तो कभी नीति अनिश्चितता से कमजोर। यही अस्थिर डॉलर कॉर्पोरेट गाइडेंस में FX हेडविंड/टेलविंड के रूप में दिखा।
अप्रैल के क्रैश में ETF और विकल्प बाजार की भूमिका पर भी नजर रही। इंडेक्स ETFs में भारी आउटफ्लो और ऑप्शंस में पुट वॉल्यूम बढ़ने से गिरावट तेज हुई। जैसे ही नीति से नरमी के संकेत आए, वही लीवरेज रिवर्स में काम आया—शॉर्ट कवरिंग और कॉल खरीदारी ने रैली को गति दी। मनी मार्केट फंड्स में हाई कैश बैलेंस ने भी ‘डिप बाय’ को ईंधन दिया—रिटेल और संस्थागत दोनों ने तेज मूव में कदम मिलाने की कोशिश की।
जो निवेशक 2020 की सीख साथ लेकर आए थे, उन्होंने हेजिंग को टूल की तरह इस्तेमाल किया—इंडेक्स पुट्स, सेक्टर रोटेशन, और क्वालिटी टिल्ट। इस बार भी यही दिखा—तेजी-बिकवाली तेज रही, और रिवर्सल भी उतना ही तेज। फर्क बस इतना कि 2025 का झटका नीति-चालित था, महामारी जैसा सप्लाई-डिमांड शॉक नहीं। इसलिए जैसे ही नीति संकेत बदले, प्राइसिंग भी बदली।
ग्लोबल एंगल भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अमेरिकी टैरिफ का असर यूरोप और एशिया के इक्विटी और मुद्रा बाजारों पर पड़ा। उभरते बाजारों में अप्रैल की गिरावट के दौरान आउटफ्लो बढ़े—जोखिम कम करने के लिए ग्लोबल फंड्स ने पोजीशन हल्की की। निर्यात-आधारित एशियाई अर्थव्यवस्थाओं और सप्लाई-चेन से जुड़ी कंपनियों ने दबाव देखा, जबकि कुछ घरेलू-उन्मुख कहानियों में पैसा टिके रहने की कोशिश करता रहा।
निवेशक किस पर नजर रखें? चार-चीजें सबसे अहम दिखती हैं:
- टैरिफ और व्यापार वार्ता: क्या अस्थायी रोक स्थायी नरमी में बदलेगी या फिर नई सूची आएगी?
- फेड की चाल: महंगाई और विकास के बीच फेड कितनी दूरी बनाए रखता है—डॉट प्लॉट, गवर्नर बयान, और यील्ड कर्व संकेत देंगे।
- कमाई और मार्जिन: क्या कंपनियां लागत बढ़ने के बावजूद मार्जिन बचा पा रही हैं? गाइडेंस में शब्दों के छोटे बदलाव भी मायने रखते हैं।
- बाजार की चौड़ाई और लिक्विडिटी: क्या रैली कुछ बड़े नामों तक सीमित है या मिड-स्मॉल में भी फॉलो-थ्रू बन रहा है?
सेक्टरों की बात करें तो औद्योगिक, रक्षा, ऊर्जा सेवाएं, और सेलेक्ट घरेलू कंज्यूमर थीम्स ने नीति-कथा के बीच अपनी-अपनी जगह बनाई। टेक में भी कहानी एक जैसी नहीं रही—क्लाउड और एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर ने स्थिर रुझान दिखाया, जबकि हाई-वैल्यूएशन, प्रॉफिट-लाइट कहानियां ज्यादा हिल गईं। सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में डिज़ाइन टूल्स और फाउंड्री-सप्लाई पर अलग-अलग असर दिखा—जहां मांग लंबी है, वहां गिरावट में खरीदार दिखे।
वित्तीय सेक्टर ने यील्ड्स की वजह से राहत महसूस की, पर क्रेडिट क्वालिटी पर नजर बनी रही। कमर्शियल रियल एस्टेट, खासकर ऑफिस, अब भी एक सवाल है—रीफाइनेंसिंग लागत और वैकेंसी दोनों चुनौती हैं। रिटेल बैंकिंग में डिपॉजिट कॉस्ट और लोन ग्रोथ के बीच बैलेंस बनाना मुश्किल रहा, लेकिन पेमेंट्स और कार्ड्स बिजनेस में खर्च का रुझान सहारा देता दिखा।
डेटा-डिपेंडेंसी इस दौर की पहचान रही। एक हफ्ते अच्छा डेटा आता तो ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ की उम्मीद बढ़ती, अगले हफ्ते कीमतों के आंकड़े चिंता बढ़ा देते। यही कारण है कि वोलैटिलिटी इंडेक्स समय-समय पर उछला—निवेशक हर नए हेडलाइन पर तेजी से पोजीशन बदलते रहे। ट्रेंड-फॉलोइंग और हाई-फ्रिक्वेंसी रणनीतियों ने भी इंट्राडे मूव्स को बड़ा बनाया।
2025 की सीख सीधी है: राष्ट्रपति की नीतियां शॉर्ट-टर्म में बाजार को झटका दे सकती हैं, लेकिन रिकवरी के लिए जरूरी ईंधन अब भी वही पुराना है—कमाई की मजबूती, मांग में टिकाऊपन और तरलता। इसलिए ही अप्रैल के ऐतिहासिक क्रैश के बाद भी जून में रिकॉर्ड बन गए। फिर भी, यह कहानी अधूरी है—फेड की राह, टैरिफ का अगला पन्ना और कमाई की रफ्तार तय करेगी कि यह रिकॉर्ड लंबा चलता है या नहीं।

आगे की राह: जोखिम, मौके और संकेत
ट्रेड पॉलिसी का हर नया कदम कीमतों पर असर डालता है—सीधे या सप्लाई-चेन के जरिए। अगर टैरिफ स्थायी बने रहते हैं, तो इनफ्लेशन पर ऊपर का दबाव बनेगा और फेड पर दरें ऊंची रखने का दबाव बढ़ेगा। इसका असर वैल्यूएशन और कैश-फ्लो डिस्काउंटिंग पर पड़ेगा। अगर बातचीत में ब्रेकथ्रू आता है, तो यील्ड्स में राहत और इक्विटी मल्टिपल्स में सहारा मिल सकता है।
इंडेक्स कंसन्ट्रेशन भी बड़ा फैक्टर है। अगर मेगाकैप्स अच्छा करती हैं, तो इंडेक्स नई ऊंचाइयां छू सकता है, भले मिड-स्मॉल पीछे हों। लेकिन जैसे ही कोई मेगाकैप लड़खड़ाता है, इंडेक्स पर असर तुरंत दिखता है। इसलिए ब्रीड्थ पर नजर जरूरी है—आखिर लंबी रैली को टिकाऊ बनाने के लिए व्यापक भागीदारी चाहिए।
कमाई सीजन अगले पड़ाव का रास्ता दिखाएगा। मैनेजमेंट कमेंट्री में टैरिफ पास-थ्रू, इन्वेंटरी प्लानिंग और कैपेक्स पर क्या कहा जाता है—यही असली सुराग हैं। खासकर AI-संबंधित कैपेक्स—डेटा सेंटर, पावर, कूलिंग, नेटवर्किंग—कितना टिकाऊ है? अगर यहां मांग बनी रही, तो इंडस्ट्रियल और एनर्जी ग्रिड-लिंक्ड थीम्स को सपोर्ट मिलता रहेगा।
अंत में, लिक्विडिटी। कॉर्पोरेट बायबैक, डिविडेंड, और मनी मार्केट फंड्स के कैश बैलेंस बाजार के मूड को बदल सकते हैं। अप्रैल के बाद जैसे ही स्पष्टता आई, यही कैश रैली का ईंधन बना। आगे भी, कोई भी नीति संकेत—चाहे सख्ती हो या नरमी—सबसे पहले इसी कैश फ्लो का रुख बदलेंगे।
2025 के पहले आठ महीनों ने साबित किया कि उछाल और गिरावट अब तेज होते हैं, और यू-टर्न भी। बस फर्क इतना है कि हेडलाइन-ड्रिवन दिन ज्यादा हैं और धैर्य की परीक्षा भी। बाजार फिर रिकॉर्ड पर हैं, लेकिन कहानी अभी जारी है—और अगले अध्याय की कुंजी वही तीन चीजें हैं: नीतियां, कमाई, और यील्ड्स।
SIDDHARTH CHELLADURAI
अगस्त 23, 2025 AT 18:54ट्रंप के टैरिफ ने भारतीय निर्यातकों को काफी झकझोर दिया 🚀💥। पर चुनौतियों में नयी संभावनाएँ भी छिपी हैं 😊। इस दौर में लिक्विडिटी मैनेजमेंट पर ध्यान देना आवश्यक है।
Deepak Verma
अगस्त 26, 2025 AT 02:28बाजार की चापलूसी अक्सर बड़ी होती है।
Rani Muker
अगस्त 28, 2025 AT 10:01सही कहा, छोटे उद्योगों को अभी भी सप्लाई‑चेन की गड़बड़ी से जूझना पड़ रहा है। एक साथ मिलकर समाधान ढूँढना ज़रूरी है।
Hansraj Surti
अगस्त 30, 2025 AT 17:34अमेरिकी टैरिफ का असर वैश्विक व्यापार में अद्भुत रूप से गहरा है। जब डॉलर मजबूत होता है तो विदेशी निवेशकों की रुचि स्वाभाविक रूप से घटती है। उसी समय फेड की मौद्रिक नीति सख्त रहने से इक्विटी की वैल्यूएशन पर दबाव लगातार बढ़ता है। ट्रंप की रणनीति में देखी गई अस्थिरता ने निवेशकों के मनोबल को कई चरणों में हिला दिया। भले ही कुछ सेक्टरों ने रैली की लेकिन उनका मोटा आधार केवल कमाई की शक्ति पर ही आधारित था। वॉल स्ट्रीट पर तकनीकी स्टॉक्स का झुंड अक्सर बाजार के मूवमेंट को गति देता है। स्मॉल‑कैप कंपनियों को क्यूरेटेड फंड्स की माँग में गिरावट का सामना करना पड़ा। निवेशकों ने एसेट अलोकेशन को विविधीकृत करने की कोशिश में बांड में शरण ली। दुर्भाग्यवश बॉन्ड यील्ड में तेज बढ़ोतरी ने कई अप्रोच को उलटा दिया। फिर भी खास करके उन कंपनियों ने जो कैश फ्लो और प्राइसिंग पावर रखती हैं, फ़ायदा उठाया। ऐसी कंपनियों की रिटर्न दरें अक्सर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्थिर रहती हैं। वित्तीय क्षेत्र में नीतियों के उतार‑चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता स्पष्ट दिखी। कुल मिलाकर यह अवधि एक जटिल नीति‑निर्धारण और बाजार प्रतिक्रिया की कहानी है। भविष्य में टैरिफ के पुनर्मूल्यांकन और फेड की दर नीति प्रमुख संकेतक बनेंगे। इसलिए निवेशकों को दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान देना चाहिए, न कि केवल अल्पकालिक झटकों पर। 🚀
Naman Patidar
सितंबर 2, 2025 AT 01:08बहुत हद तक ये सारे आंकड़े तूफानी लगते हैं।
Vinay Bhushan
सितंबर 4, 2025 AT 08:41ट्रंप की नीति में दृढ़ता देखी जाए तो बाजार में स्थिरता आ सकती है। हमें अनावश्यक बहस से बचना चाहिए और नीतियों पर फोकस करना चाहिए। यही तरीका निवेशकों को भरोसा देगा।
Gursharn Bhatti
सितंबर 6, 2025 AT 16:14कई लोग नहीं देखते कि ये टैरिफ एक बड़े गुप्त गठबंधन का हिस्सा हो सकता है। पीछे का मकसद वैश्विक शक्ति का पुनर्वितरण हो सकता है। इस सिलसिले में विदेशी मीडिया ने भी बहुत कम रिपोर्टिंग की है। इसलिए सतर्क रहना ज़रूरी है।
Arindam Roy
सितंबर 8, 2025 AT 23:48पिछली हफ्ते की रैली बस एक झल्ली थी।
Parth Kaushal
सितंबर 11, 2025 AT 07:21बाजार की इस घुमावदार सवारी को देख कर दिल धड़कता है। ट्रंप का दूसरा कार्यकाल मानो एक तमाशा बन गया है जहाँ हर नीति एक नई दांव है। इंडेक्स की ऊंची उड़ान अस्थायी लगती है जबकि अंतर्जात जोखिम छिपे रह जाते हैं। निवेशकों की आशा और भय दोनों ही इस अस्थिरता में मिश्रित हो जाते हैं। वित्तीय आंकड़े बताते हैं कि बड़ी कंपनियों की मदद से ही इंडेक्स ने नया हाई छुआ। हालाँकि छोटे कंपनियों की ग्रोथ पर दबाव बना रहता है और उनका भविष्य अनिश्चित है। टैरिफ का असर प्रत्येक सेक्टर में अलग-अलग दिख रहा है, जिससे पोर्टफोलियो को पुनर्संतुलित करना पड़ेगा। इस सब के बीच फेड की मुद्रा नीति एक स्थिर धुरी की तरह काम कर रही है, पर भविष्य में क्या होगा, कोई नहीं कह सकता।
Namrata Verma
सितंबर 13, 2025 AT 14:54वाह! कितना शानदार! क्या! टैरिफ‑घोटालों की भरमार-और हम सब बस!! देख रहे हैं!!!
Manish Mistry
सितंबर 15, 2025 AT 22:28टैरिफ के प्रभाव को समझने के लिए व्यापक डेटा विश्लेषण आवश्यक है। वर्तमान में उपलब्ध आंकड़े असमान हैं।
Ayush Sanu
सितंबर 18, 2025 AT 06:01वैश्विक विनिमय दरों का उतार‑चढ़ाव सीधे अमेरिकी इंडेक्स पर असर डालता है। इसलिए रणनीति बनाते समय इन कारकों को अवश्य मानना चाहिए।
Prince Naeem
सितंबर 20, 2025 AT 13:34समय की धारा में बाजार की उथल‑पुथल निरंतरता का हिस्सा है। यह हमें धैर्य और समझ की ओर प्रेरित करती है।
Jay Fuentes
सितंबर 22, 2025 AT 21:08चलो, इस अस्थिरता को सीख के रूप में देखिए, आगे का रास्ता बेहतर बनेगा! 🚀
Veda t
सितंबर 25, 2025 AT 04:41हमारी अर्थव्यवस्था को बाहरी हस्तक्षेप से बचाना जरूरी है।
akash shaikh
सितंबर 27, 2025 AT 12:14yeh toh bilkul expected tha, bhai! कोई भी बड़ी नीति बिना झंकार के नहीं आती।
poornima khot
सितंबर 29, 2025 AT 19:48आप सभी को याद दिलाना चाहता हूँ कि इस बाजार के उतार‑चढ़ाव में धैर्य ही सबसे बड़ा मित्र है। साथ ही, दीर्घकालिक विज़न को कभी मत भूलिए। इस यात्रा में हम सब एक साथ हैं।
Mukesh Yadav
अक्तूबर 2, 2025 AT 03:21ऐसे लगता है कि हर नई नीति का पीछे कोई छुपा एजेंडा है, जो केवल कुछ ही लोगों को पता है। ये ड्रामा हमें तो कहीं और ले जाता है! लेकिन अंत में असली ताकत जनता की एकजुटता में है।