देवशयनी एकादशी 2024: महत्व, व्रत कथा और पौराणिक कहानियां

देवशयनी एकादशी 2024: महत्व, व्रत कथा और पौराणिक कहानियां

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली इस एकादशी का महत्व धार्मिक दृष्टि से गहरा है। इस दिन का महत्व अत्यधिक है क्योंकि इसे भगवान विष्णु के चार माह की निद्रा आरंभ करने का दिन माना जाता है। इन चार महीनों को चातुर्मास कहते हैं। धार्मिक विश्वास के अनुसार, इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है।

व्रत कथा

देवशयनी एकादशी की व्रत कथा प्राचीन काल के एक महान और धर्मनिष्ठ राजा मान्धाता से संबंधित है। राजा मान्धाता एक शक्तिशाली और न्यायप्रिय राजा थे, लेकिन एक बार उनके राज्य में बारिश नहीं हुई, जिससे भीषण अकाल पड़ा। राजा और राज्य के लोग नहीं समझ पा रहे थे कि इस अकाल का कारण क्या है। राजा ने कई उपाय किए, लेकिन कोई भी उपाय सफल नहीं हो पा रहा था।

तब एक दिन, राजा ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक साधु से परामर्श लिया। साधु ने राजा को बताते हुए कहा कि यह अकाल उनकी एकादशी का उपवास न रखने की गलती के कारण है। साधु ने राजा से कहा कि यदि वे एकादशी का व्रत रखते हैं और अपने व्यक्तित्व और राजधर्म में सुधार करते हैं, तो उनके राज्य में अवश्य ही बारिश होगी। राजा मान्धाता ने साधु की बात मानकर एकादशी का व्रत किया और राज्य में फिर से खुशहाली आ गई। इस व्रत कथा से यह स्पष्ट होता है कि एकादशी का व्रत रखने से न केवल व्यक्तिगत लाभ होते हैं बल्कि पूरे समाज की भलाई भी होती है।

चातुर्मास और देवशयनी एकादशी

चातुर्मास, जिसमें देवशयनी एकादशी एक महत्वपूर्ण तिथि होती है, हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के चार माह की निद्रा का समय होता है। इस दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं, और यह समय विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और व्रतों के लिए महत्वपूर्ण होता है। चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है और इसके दौरान हरे चने, दही, और तेज मसालों का सेवन वर्जित होता है। इस दौरान व्यक्ति को संयमित जीवन जीने और अधिक से अधिक धार्मिक क्रियाकलापों में संलग्न रहने की सलाह दी जाती है।

देवशयनी एकादशी की पूजा विधि

देवशयनी एकादशी के दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन पूजा की विधि इस प्रकार है:

  • सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं।
  • धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प अर्पित कर भगवान का पूजन करें।
  • व्रत कथा का पाठ करें और उसे सुनें।
  • दिन भर निराहार रहें या फलाहार ग्रहण करें।
  • रात को जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन पारण कर अपनी व्रत समाप्त करें।

व्रत के लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से अनेक लाभ होते हैं। इस व्रत से व्यक्ति के सभी ऋणों से मुक्ति मिलती है, उसे शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति के पिछले जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से पारिवारिक खुशहाली और मानसिक शांति मिलती है।

इस प्रकार देवशयनी एकादशी का व्रत और पूजा विधि हिंदू धर्म में अपने आप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस दिन का व्रत रखने वाले भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, और वे जीवन में सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाते हैं।

6 टिप्पणि

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    SIDDHARTH CHELLADURAI

    जुलाई 17, 2024 AT 19:33

    चलो, इस एकादशी के उपवास को सच्ची लगन से रखें, शरीर और मन दोनों को शुद्ध करेंगे 😇।

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    Deepak Verma

    जुलाई 17, 2024 AT 21:13

    यह सब तो बहुत ही सामान्य है, बस वही करें।

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    Rani Muker

    जुलाई 17, 2024 AT 22:36

    व्रत के दौरान हरे चने और दही से बचना चाहिए क्योंकि यह चातुर्मास में वर्जित है।

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    Hansraj Surti

    जुलाई 18, 2024 AT 00:00

    देवशयनी एकादशी का स्वरूप मात्र एक धार्मिक कारनामा नहीं है। यह वह समय है जब ब्रह्मांड का पिंड विष्णु नींद की गहराइयों में डूबे होते हैं। मनुष्य को इस अवस्था को समझने के लिये आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। उपवास के द्वारा शारीरिक ऊर्जा का प्रवाह शुद्ध होता है। शरीर के हर रंध्र में से पापों के धुंधले कण बाहर निकलते हैं। व्रत कथा सुनते समय आत्मा के भीतर की अज्ञात शक्ति जाग्रत होती है। रात के जागरण में भजन-कीर्तन का स्वर ब्रह्मांडीय कंपन को सम्मिलित करता है। यह प्रक्रिया एक अज्ञात परिमाण को स्थापित करती है। पारिवारिक हित के लिये इस व्रत को दृढ़ता से निभाना आवश्यक है। समाज में शांति और समृद्धि का सूत्र इस एकादशी में निहित है। यदि मन में कोई संदेह हो तो उसे त्याग कर भक्ति में लीन होना चाहिए। प्राचीन ग्रंथों ने इस दिन को चार महीने की अनिद्रा से मुक्त होने का उपाय कहा है। आधुनिक विज्ञान भी इस उपवास के शारीरिक लाभों को प्रमाणित कर रहा है। इसे अपनाने वाले व्यक्तियों में रोग प्रतिरोधक शक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इसलिए देवशयनी एकादशी को केवल एक त्योहार नहीं बल्कि जीवन के सच्चे मार्गदर्शक के रूप में देखना चाहिए। सभी को इस सुनहरी अवसर का पूर्ण उपयोग करने की शुभकामनाएं 🌟।

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    Naman Patidar

    जुलाई 18, 2024 AT 01:23

    बकवास, कुछ नया नहीं।

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    Vinay Bhushan

    जुलाई 18, 2024 AT 02:46

    ध्यान से सुनो, अगर तुम्हें सच्ची प्रगति चाहिए तो इस एकादशी को अपना लक्ष्य बना लो और बिना चाहे किसी चीज़ से समझौता मत करो यह तुम्हारी शक्ति को दो गुना बढ़ाएगा।

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