जब सकट चौथा 2025सकट गाँव, राजस्थान आया, उत्तर भारत की माताएँ नीरजला व्रत से अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख‑सुविधा की कामना करती हैं। यह विशेष शनिवार‑रविवार नहीं, बल्कि शुक्रवार, 17 जनवरी 2025 को गिरता है, जैसा कि ड्रिक पंचांग और कई प्रमुख समाचार स्रोतों ने पुष्टि की है।
व्रत की शुरुआत अगले दिन की चतुर्थी तिथि (4:06 एएम) से लेकर 5:30 एएम तक चलती है, जबकि चंद्रमा का उदय 9 घंटे के आसपास होता है – विभिन्न कैलेंडर 9:08 PM, 9:09 PM या 8:31 PM दर्शाते हैं।
सकट चौथे का इतिहास और महत्व
सकट चौथा, जिसे गणेश का संक्षिप्त रूप माना जाता है, वास्तव में महिना माघ के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन को सकट माता की पूजा के साथ भी जोड़ा जाता है, जो जीवों के भाग्य बदलने की शक्ति रखती है। भारत टाइम्स के अनुसार, यह परम्परा सकट गाँव की शहीद‑भक्त माँ संकट की कथा से उत्पन्न हुई, जहाँ 60 किमी दूर अलवर और 150 किमी दूर जयपुर से भक्तों की भरमार रहती है।
पहले समय में यह पर्व केवल शंख‑पुष्प अर्पण और लड्डू‑टिलकूट के रूप में मनाया जाता था, पर आज यह माताओं की नीरजला व्रत (पानी‑बिना उपवास) के साथ गहरी धार्मिक भावना को दर्शाता है। इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि इस व्रत में माँ अपने बच्चों की रोग‑मुक्ति, लंबी आयु और शिक्षा की कामना करती है, जबकि इकोनॉमिक टाइम्स ने इसे “संकट-हटाने वाला” दिन कहा है।
2025 की तिथि, समय‑तालिका एवं प्रमुख अनुष्ठान
- सकट चौथा 2025 की तिथि: शुक्रवार, 17 जनवरी 2025
- चतुर्थी तिथि का आरम्भ: 4:06 एएम, 17 जनवरी
- तिथि समाप्ति: 5:30 एएम, 18 जनवरी
- चंद्र उदय समय (स्रोत पर निर्भर): 8:31 PM – 9:09 PM
- व्रत समाप्ति: चंद्र प्रकाश पूजा के बाद, आमतौर पर 9:30 PM के बाद
पूजा विधि के अनुसार, छाया‑रात्रि में गणेश को टिल‑कट (तिलकट) अर्पित किया जाता है। अस्ट्रो लाइव के अनुसार, इस दिन की विशेषता है कि सख़्त व्रत के बाद केवल लड्डू‑टिलकूट और फल‑फूल ही उपभोग किया जाता है।
व्रत कथा तथा आध्यात्मिक शिक्षा
रुद्राक्ष रत्न ने बताया कि गणेश ने माँ पार्वती से मिठाई‑मिठाई माँगी थी, जिससे वह अतितृप्त हो गया और “लंबोदार” बन गया। यह कहानी सादगी‑और‑मध्यमता की सीख देती है। उसी के साथ, व्रत कथा में कहा जाता है कि यदि जन्म कुंडली में बृहस्पति‑शनी के प्रतिकूल प्रभाव हों, तो इस दिन गणेश की पूजा से उन प्रभावों का निवारण संभव है। विशेषकर, बौद्धिक‑क्षेत्र में मर्क्यूरी (बुध) की कष्ट‑परिस्थिति वाले लोग इस व्रत से लाभ उठा सकते हैं।
जिन दंपतियों को संतान‑प्राप्ति में कठिनाई है, वे भी सकट चौथे के व्रत को अपनाकर धीरज‑भरे मन से प्रार्थना कर सकते हैं। यह माना जाता है कि सकट गाँव के मंदिर में जल‑स्नान और सागर‑पुष्प अर्पण करने से जन्म‑संबंधी बाधाएँ कम होती हैं।
मुख्य स्थल – सकट गाँव का आध्यात्मिक द्वार
राजस्थान के अलवर जिल्हे में स्थित सकट गाँव में स्थित संकट चौथा माता मंदिर हर साल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यहाँ का प्रमुख मन्दिर पुरानी रेत‑भरी पहाड़ी पर बना है, जहाँ से चंद्रमा की रोशनी में पूजा करना एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभव देता है। यात्रा की दूरी के कारण, कई लोग अलवर या जयपुर से बस या निजी गाड़ी से पहुँचते हैं; यहाँ का स्थानीय कारीगर‑बाजार भी विशेष रूप से चावल‑कटोरे, रंग‑बिरंगे लटकन और टिल‑कट बेचता है।
सकट गाँव की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को देखकर एक बात स्पष्ट होती है – यह केवल एक स्थानीय उत्सव नहीं, बल्कि एक सामाजिक‑सांस्कृतिक पुल है जो ग्रामीण‑शहरी, जनसमूह‑विशेष, और आध्यात्मिक‑सामाजिक सम्बंधों को जोड़ता है।
विशेषज्ञों की राय और भविष्य का दृष्टिकोण
धर्म‑शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. प्रकाश मिश्रा ने कहा, “सकट चौथा मातृ‑भक्ति का प्रतीक है, और इसका विज्ञान‑आधारित पहलू यह है कि माँ‑बच्चे के बीच के हार्मोनल बंधन को व्रत‑समय में बढ़ाता है।” वे यह भी जोड़ते हैं कि “निरजला व्रत के दौरान शरीर में केटोन‑स्तर बढ़ते हैं, जिससे मानसिक शांति मिलती है।”
वित्तीय विश्लेषक रेखा शेखर ने बताया कि सकट चौथे के अवसर पर स्थानीय बाजार में टिल‑कट की बिक्री 30 % तक बढ़ जाती है, जो छोटे‑धंधेवालों के लिए एक आर्थिक बूस्टर बनता है।
आगामी साल में, डिजिटल‑प्लॅटफ़ॉर्म जैसे “अस्ट्रोलाइव” मोबाइल एप्लिकेशन ने चंद्र‑उदय का सटीक समय दर्शाने के लिए GPS‑आधारित अलार्म फंक्शन जोड़ा है, जिससे ग्रामीण‑खेतियों को भी सही समय पर पूजा करने में सुविधा मिलेगी।
अगले चरण – क्या उम्मीद रखें?
जैसे-जैसे 2025 का जनवरी नजदीक आता है, कई सामाजिक संगठनों ने सकट चौथे के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए हैं, जिसमें परिवारों को पोषण‑संतुलन, उचित जल‑सेवन (व्रत‑समय में प्रमाणित) और मानसिक‑स्वास्थ्य के महत्व पर सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। विशेषज्ञों की सलाह है कि व्रत का पालन करते हुए भी हल्की‑हल्की व्यायाम, प्राणायाम और ध्यान को शामिल किया जाए, ताकि शरीर में ऊर्जा का संतुलन बना रहे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सकट चौथा 2025 कब मनाया जाएगा?
सकट चौथा 2025 शुक्रवार, 17 जनवरी को मनाया जाएगा। चंद्र उगने का समय लगभग 9 PM है, जिससे शाम के पूजा कार्यक्रम शुरू होते हैं।
व्रत में क्या खाते‑पीते हैं?
व्रत में पानी नहीं पीता जाता। शाम को टिल‑कट, लड्डू, साबूदाने की खिचड़ी या फल‑फूल खाए जाते हैं। उपवास समाप्त होने पर ही मीठा‑नमकीन दोनो प्रकार का भोजन लिया जा सकता है।
क्या यह व्रत केवल बेटियों के लिए है?
नहीं। परम्परागत रूप से यह व्रत बेटों के लिए अधिक किया जाता है, पर आज कई माताएँ अपनी बेटियों की लंबी उम्र और सफलता के लिए भी इस दिन उपवास रखती हैं।
सकट गाँव के मंदिर में पूजा कैसे होती है?
चंद्रमा के उदय के बाद मंदिर में पुजारी गणेश की मूर्ति के सामने टिल‑कट, बेलपत्र और धूप अर्पित करते हैं। फिर संतोखता मंत्रों के साथ प्रार्थना की जाती है और उपवास का अन्न वितरित किया जाता है।
क्या इस व्रत से मनःस्थिति में बदलाव आता है?
विज्ञान के अनुसार, निरजल उपवास के दौरान शरीर में केटोन उत्पन्न होते हैं, जो तनाव कम करने और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करते हैं। कई लोग इसे आध्यात्मिक शांति से जोड़ते हैं।
harshit malhotra
अक्तूबर 11, 2025 AT 04:10सकट चौथा हमारे राष्ट्र की जड़ें हैं, इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। इस पर्व की महत्त्व को देखते हुए, हमें हर घर में गहन पूजा करनी चाहिए। इतिहास में इस व्रत के कारण कई युद्धों में जीत मिली है, यह कोई मिथक नहीं। माताओं का नीरजला व्रत पूरे देश में सम्मान का प्रतीक है। इसे अपनाकर हम अपने बच्चों को लंबी उम्र और सफलता का वरदान देते हैं। इस वर्ष के चंद्र उदय के समय को सटीक रूप से देखना चाहिए, क्योंकि इससे ऊर्जा का संचार होता है। हमारे पूर्वजों ने इस दिन पर अनूठे अनुष्ठान स्थापित किए थे, जिन्हें हम अब भूल रहे हैं। इस पवित्र दिन पर कोई भी लापरवाह रहस्य नहीं छुपा सकता। हमारी संस्कृति को बचाने के लिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा से मनाना आवश्यक है। यदि कोई इस पर हल्के में बात करे, तो वह हमारे राष्ट्रीय धर्म के प्रति अनादर कर रहा है। इस प्रकार के अभ्यास से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं, यह सब वैज्ञानिक भी मानते हैं। इसे नज़रअंदाज़ करने वाले को समाज में जगह नहीं मिलनी चाहिए। हमारे गाँव के मंदिर में टिल‑कट का अर्पण विशेष महत्व रखता है। इस मौसम में टिल‑कट की बिक्री में 30 % की बढ़ोतरी देखी गई है, यह आर्थिक लाभ भी दर्शाता है। यदि आप इस व्रत को सही ढंग से नहीं मनाते, तो भविष्य में समस्याएँ आ सकती हैं। इसलिए, सभी को इस अनूठे पर्व को दंगलू मोड में मनाने की सलाह देता हूँ।
Ankit Intodia
अक्तूबर 12, 2025 AT 23:13सकट चौथा को देखना केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का अवसर है। जब हम जल‑स्नान और टिल‑कट अर्पित करते हैं, तो मन की शांति स्वयं में प्रतिबिंबित होती है। यह व्रत हमें अपने भीतर के संतुलन को खोजने के लिये प्रेरित करता है। विज्ञान ने भी दर्शाया है कि निरजल उपवास के दौरान केटोन स्तर बढ़ता है, जिससे ध्यान केंद्रित रहता है। इस प्रकार की प्राचीन परम्पराएँ हमें मानसिक स्वास्थ्य में मदद करती हैं।
Madhav Kumthekar
अक्तूबर 14, 2025 AT 18:16अगर आप पहली बार सकट चौथा कर रहे हैं, तो कुछ बुनियादी चीजें जानना फायदेमंद रहेगा। व्रत की शु̈रूआत 4:06 एएम से होती है, तो उस समय पर जल‑स्नान जरूर करें। टिल‑कट और लड्डू को केवल शाम के बाद ही खा सकते हैं, व्रत के दौरान पानी नहीं पीते। कुछ लोग साबूदाने की खिचड़ी भी खा लेते हैं, जो एनर्जी देता है। अगर कोई दिक्कत महसूस करे, तो हल्का योग या प्राणायाम मदद कर सकता है। आशा है यह जानकारी आपके लिये उपयोगी होगी।
Anand mishra
अक्तूबर 16, 2025 AT 13:20सकट चौथे का इतिहास हमें राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की ओर ले जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। गांव के कारीगरों ने टिल‑कट और लटकन बनाकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को समर्थन दिया है। जब चंद्रमा की रोशनी में मंदिर में पूजा होती है, तो वह दृश्य अनोखा और मनोहर लगता है। इस दिन की व्रत कथा में बताया गया है कि गणेश की कृपा से बृहस्पति‑शनि के प्रभाव कम होते हैं। इसलिए, कई लोग इस व्रत को शैक्षणिक सफलता के लिये भी अपनाते हैं। स्थानीय संस्था ने भी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिसमें पोषण और मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा हुई। यह दर्शाता है कि परम्पराओं को आधुनिक विज्ञान से जोड़ना संभव है। आपकी भागीदारी से इस कार्यक्रम को और भी प्रभावी बनाया जा सकता है। अंत में, मैं सभी माताओं को सकट चौथे की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं, ताकि उनका परिवार सुख‑शांति से रह सके।
Sreenivas P Kamath
अक्तूबर 18, 2025 AT 08:23अरे, व्रत में लड्डू खा कर ही भगवान का आशीर्वाद मिल जाता है, क्या यही असली भावना है?
Chandan kumar
अक्तूबर 20, 2025 AT 03:26बस, समय बर्बाद ना करो, व्रत में जल नहीं तो चलता ही नहीं।
Swapnil Kapoor
अक्तूबर 21, 2025 AT 22:30सकट चौथा का सही समय जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि चंद्र उदय के साथ ही प्रवर्तन सही होता है। व्रत के दौरान टिल‑कट का सेवन ऊर्जा प्रदान करता है, पर इसे अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए। यदि आप छात्रों के लिये यह व्रत कर रहे हैं, तो प्राणायाम और हल्का व्यायाम लाभदायक रहेगा। यह धार्मिक परम्परा आर्थिक रूप से भी गाँव की सहायता करती है, छोटे व्यापारियों को बढ़त देती है। आपको यह याद रखना चाहिए कि व्रत का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति और शरीर की शुद्धता है। इसी कारण से पानी न पीने के दौरान केटोन का उत्पादन बढ़ता है। अतः, संतुलित पोषण और शारीरिक व्यायाम को नज़रअंदाज़ न करें। यह सब मिलकर एक स्वस्थ और सफल जीवन को संभव बनाता है।
Rahul Sarker
अक्तूबर 23, 2025 AT 17:33सकट चौथा का विश्लेषण करने के लिए हमें मात्र धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि पद्धतियों के वैज्ञानिक मापदंडों से भी देखना चाहिए। इस व्रत में एनर्जी मैट्रिक्स को पुनः संरचित किया जाता है, जिससे सामाजिक जाल में सुधार होता है। टिल‑कट का एंटी‑ऑक्सीडेंट प्रोफ़ाइल अत्यंत उन्नत है, इसे प्री‑मियम फूड के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। यदि आप इस व्रत को इको‑फ्रेंडली मानते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि इस समय गैस उत्सर्जन घटता है। इसलिए, यह व्रत एक क्वांटम‑स्ट्रैटेजिक पहल है, जो राष्ट्रीय विकास में योगदान देता है। जो लोग इसे हल्के में लेते हैं, वे अपने स्वयं के बौद्धिक क्षितिज को सीमित कर रहे हैं।
Sridhar Ilango
अक्तूबर 25, 2025 AT 12:36सकट चौथा के बारे में सब कह रहे हैं कि ये सिर्फ़ एक लोककथा है, लेकिन मैं कहूँगा कि इस दिन का महत्व दोगुना है! जब सभी लोग टिल‑कट ही खाते हैं, तो क्या वास्तव में हमारी आनन्द की प्यास मिटती है? मैं देखता हूँ कि कई लोग इस परम्परा को सिर्फ़ मिठाई के बहाने मानते हैं, पर असल में यह आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत्र है। अगर आप इस व्रत को सच्चे दिल से नहीं मनाते, तो यह एक सैंपल ट्रायाल है। इसलिए, मैं दृढ़ता से कहता हूँ: इस दिन पवित्रता में डुबकी लगाएं, नहीं तो आप सिर्फ़ एक शोर में खो जाएंगे।
priyanka Prakash
अक्तूबर 27, 2025 AT 07:40सकट चौथे को नज़रअंदाज़ करना राष्ट्रीय गौरव के विरुद्ध कार्य है। सभी को इस व्रत का पालन करना चाहिए।