Swine Flu का कहर: दिल्ली-उत्तर भारत में तेजी से बढ़ते मामले, लक्षण और बचाव के उपाय
उत्तर भारत में Swine Flu का नया संकट
देश के कई हिस्सों में Swine Flu (H1N1) का प्रकोप तेजी से फैल रहा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2024 तक देश में 20,414 Swine Flu मामले दर्ज किए गए और 347 लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा असर उत्तर भारत के राज्यों, खासकर दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में दिख रहा है। राजधानी दिल्ली में अकेले 3,141 Swine Flu केस सामने आए हैं, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है।
दिल्ली-एनसीआर के बड़े अस्पतालों का कहना है कि लगभग 54% घरों में कम से कम एक व्यक्ति को फ्लू जैसे लक्षण महसूस हो रहे हैं। इनमें बुजुर्ग, बच्चे और लम्बी बीमारी से जूझ रहे लोग सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। अस्पतालों में आने वाले मरीज बार-बार बुखार, गले में खराश और सूखी खांसी की शिकायतें लेकर पहुंच रहे हैं। कुछ मरीजों को सांस लेने में दिक्कत भी महसूस हो रही है, जिसकी टाइमिंग वायरल संक्रमण के मौसमी पीक से मेल खा रही है।
लक्षण, जोखिम और बचाव के खास उपाय
Swine Flu एक वायरल इंफेक्शन है, जो तेजी से सांस के जरिए फैलता है। वायरस सांस के रास्ते, छींक या खांसी के दौरान निकली बूंदों के संपर्क से आसानी से एक से दूसरे इंसान में जा सकता है। इसके लक्षण सामान्य फ्लू से मिलते-जुलते हैं—बुखार, बदन दर्द, कमजोरी, गले में खराश और खांसी शामिल हैं। लेकिन कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों, पुराने मरीजों और बुजुर्गों के लिए यह गंभीर रूप ले सकता है। काफी मामलों में यह फेफड़ों तक पहुंचकर निमोनिया और सांस की परेशानी बढ़ा देता है, जिससे ICU में एडमिट होने की जरूरत पड़ सकती है।
डॉक्टर जेजो करनकुमार और जगदीश जे. हीरेमठ जैसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार लोगों को हाइजीन के साथ-साथ फ्लू वैक्सीन लगवाने की सलाह दे रहे हैं। उनका कहना है कि इस बार Swine Flu की तीव्रता के पीछे मौसमी बदलाव, कोविड के बाद लोगों की बढ़ी यात्रा, और कई वार्षिक वैक्सीनेशन ना होना मुख्य वजहें हैं। पिछले दो सालों में लॉकडाउन के कारण वायरस का सर्कुलेशन कम था, लेकिन अब भीड़भाड़ और लापरवाही की वजह से संक्रमण का ग्राफ ऊपर गया है।
- बुजुर्ग, गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग और गर्भवती महिलाएं खतरे में हैं।
- अपने हाथ बार-बार धोएं और अनावश्यक बाहर न निकलें।
- भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क लगाना जरूरी है।
- फ्लू जैसे लक्षण आते ही डॉक्टर से सलाह लें, स्व-दवा या देसी इलाज से बचें।
- वैक्सीनेशन में देरी न करें, खासतौर पर रेस्क ग्रुप्स के लिए।
सरकारी एजेंसियां सतर्क हैं और हर राज्य में सिंप्टॉमेटिक मरीजों की मॉनिटरिंग के लिए निगरानी प्रोग्राम चला रही हैं। साथ ही, समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं, ताकि संक्रमण को रोका जा सके और लोगों को जागरूक किया जा सके।