Google Doodle ने याद किया K.D. Jadhav को, भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदकधारक

Google Doodle ने याद किया K.D. Jadhav को, भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदकधारक

K.D. Jadhav का जीवन और करियर

सतारा, महाराष्ट्र में 15 जनवरी 1926 को पैदा हुए K.D. Jadhav का बचपन ही कुश्ती के माहौल से घिरा था। उनके पिता दादा साहेब जाधव भी कुश्ती के मशहूर पहलवान थे और गांव में छोटे‑बड़े सभी लोग उनके दोहाते मुलाकातें देखते थे। ऐसे ही पारिवारिक वातावरण ने जाधव के भीतर दृढ़ संकल्प और संघर्षशीलता को पनपा।

जवानी में उन्होंने केवल खेल ही नहीं, देश की आज़ादी के लिए भी हाथ बंटाया। 1942 में तब उतरते ही उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया, कई बार जेल भी गए। इस जज्बे ने उनके खेल में भी अलग ही ऊर्जा जोड़ दी। 1948 की लंदन ओलंपिक में उन्होंने फ्लाइवेट वर्ग में भाग लेकर छठे स्थान तक पहुंच बना ली, जो उस समय भारतीय कुश्ती के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी। इस अनुभव ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं की समझ दी और 1952 की हेलेन्सिंकी जलती में बेहतर तैयारी करने में मददगार साबित हुआ।

कुश्ती में जाधव को "पॉकेट डायनमो" कहा जाता था क्योंकि उनका कद छोटा लेकिन शक्ति और गति में वह विशाल थे। उनका प्रशिक्षण अधिकांशतः पारम्परिक गुरुओं के साथ हुआ, लेकिन उन्होंने आधुनिक तकनीकों को भी अपनाया। यह मिश्रण ही उन्हें विश्व मंच पर खड़े होने में सहायक बना।

हेलनसिंकी 1952 में जाधव की जीत

हेलनसिंकी 1952 में जाधव की जीत

हेलेन्सिंकी के 1952 के ओलंपिक में बैन्टामवेट (57 kg) वर्ग में जाधव का सफर कई रोमांचक मुलाकातों से भरा था। पहले दौर में उन्होंने कनाडा के एड़्रियन पॉलीक्विन को हराया, जो उस समय अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी माना जाता था। इसके बाद मैक्सिको के लियोनार्डो बासुरतो के खिलाफ उनका मुकाबला आया, जिसमें जाधव ने अपनी चपलता और तकनीक से प्रतिद्वंद्वी को मात दी।

सबसे कठिन मुकाबला जापान के शोहाची इशी से था, जो मूलतः जूडो के प्रशिक्षण से आया था। यह लड़ाई 15 मिनट से अधिक चली, और अंत में जाधव एक अंक से हार गये। इशी बाद में स्वर्ण पदक जीत गया, लेकिन जाधव की लड़ाई लोकप्रियता के साथ-साथ सम्मान का स्रोत बन गई।

इसी मैच के तुरंत बाद जाधव को सोवियत संघ के राशिद मामादबेयव से मुकाबला करने का आदेश मिला, जबकि नियम के अनुसार कम से कम 30 मिनट का विश्राम होना चाहिए था। भारत में कोई आधिकारिक प्रतिनिधि न होने के कारण जाधव को पर्याप्त आराम नहीं मिला, और वह थकान के कारण अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाए। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अंतिम राउंड में जीत हासिल करके कांस्य पदक सुरक्षित किया। यह भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक था, जो 44 वर्षों तक अकेला बना रहा, जब तक 1996 में लेनडर पायेस ने एटलांटा में वही पदक नहीं जीता।

पुरस्कार के बाद जाधव भारत लौटे, जहाँ उनका स्वागत 100 से अधिक बैलगाड़ी वाले सैलून ने किया। ट्रेन स्टेशन पर उनका स्वागत ऐसे हुआ जैसे राष्ट्रीय उत्सव चल रहा हो—बच्चे झूमते, महिलाएँ ताली बजातीं और लोग खड़े‑खड़े गीत गाते। साधारण 15 मिनट की दूरी को सात घंटे की यात्रा में बदल दिया गया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनका पदक न केवल खेल की जीत थी, बल्कि राष्ट्रीय आत्म‑गौरव का भी प्रतीक था।

जाधव का सपना हमेशा अपने गांव में एक विश्वस्तरीय कुश्ती अकादमी खोलने का रहा। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम सालों में इस दिशा में कई प्रयास किए, पर संसाधन की कमी और प्रशासनिक अड़चनें उन्हें रोकती रहीं। फिर भी उनकी कहानी ने कई युवा पहलवानों को प्रेरित किया, जिनमें से कई आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं।

आज Google ने जाधव के जन्म दिवस पर विशेष डूडल लॉन्च करके न केवल उनके योगदान को याद किया, बल्कि नई पीढ़ी को उनके संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी सुनाई। यह डूडल उन कई लोगों के लिये एक स्मरणीय निशान बन चुका है, जो डिजिटल माध्यमों से इतिहास को फिर से जीवंत करना चाहते हैं।