गुरु नानक जयंती 2025: 556वें जन्मोत्सव पर सिख समुदाय ने दुनिया भर में मनाया अहिंसा और समानता का पर्व

गुरु नानक जयंती 2025: 556वें जन्मोत्सव पर सिख समुदाय ने दुनिया भर में मनाया अहिंसा और समानता का पर्व

गुरु नानक जयंती 2025 को दुनिया भर के सिख समुदाय ने 5 नवंबर को धूमधाम से मनाया — यह दिन न सिर्फ एक धार्मिक उत्सव था, बल्कि एक जीवंत सामाजिक संदेश था: समानता का जीवन जीने का तरीका। गुरु नानक देव जी के 556वें जन्मोत्सव पर भारत, पाकिस्तान, कनाडा, यूके, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित 30 से अधिक देशों में नगर कीर्तन, अखंड पाठ और लंगर के माध्यम से उनके संदेश को जीवंत रखा गया। नानक साहिब में जन्मे इस महान आध्यात्मिक नेता का संदेश, जो 15वीं सदी में जाति, धर्म और लिंग के भेदभाव के खिलाफ उठा था, आज भी दुनिया के कोने-कोने में गूंज रहा है।

नगर कीर्तन और अखंड पाठ: एक दिन की धार्मिक यात्रा

गुरु नानक जयंती के दो दिन पहले ही गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहिब की अखंड पाठ शुरू हो गई — 48 घंटे तक लगातार पाठ किया जाता है, जिसमें कोई विराम नहीं होता। इसके बाद, जब नवंबर की पूर्णिमा का दिन आया, तो भारत के अहमदाबाद, पंजाब के अमृतसर और दिल्ली के चारों ओर नगर कीर्तन निकाले गए। पंज प्यारे ने तिकोने ध्वज निशान साहिब के साथ गुरु ग्रंथ साहिब को सजाए हुए पलांग पर रखकर ले जाया। इस दौरान भक्तों ने कीर्तन गाया, गत्का की धाक दिखाई, और बच्चों ने गुरु नानक देव जी के जीवन पर नाटक किए।

लंगर: जाति और धर्म के भेद को खाने के सामने तोड़ना

इस दिन का सबसे खास पहलू था — लंगर। गुरुद्वारा में लाखों लोगों को निःशुल्क भोजन मिला — भारतीय, पाकिस्तानी, अमेरिकी, ब्रिटिश, मुस्लिम, ईसाई, हिंदू, बौद्ध, कोई भी नहीं रोका गया। लंगर की यह परंपरा गुरु नानक देव जी ने 1469 में शुरू की थी, और आज भी यही उनकी सबसे शक्तिशाली विरासत है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एक दिन में 1.2 लाख भोजन बनाए गए। एक बूढ़ी महिला ने कहा, "मैंने अपने बेटे के साथ यहाँ खाना खाया। वह मुस्लिम है। लेकिन यहाँ कोई नहीं पूछता कि तुम कौन हो।"

स्कूलों और सोशल मीडिया पर गुरु का संदेश

भारत के हजारों स्कूलों ने इस दिन को शिक्षा का अवसर बनाया। दिल्ली के एक स्कूल में बच्चों ने गुरु नानक देव जी के जीवन पर नाटक किया, जहाँ एक बच्चे ने गुरु के शब्द दोहराए — "ईश्वर एक है, और वह सबके दिल में है।" अन्य स्कूलों में आर्ट कॉम्पिटिशन, लंगर वितरण और जाति-धर्म के खिलाफ प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर कराए गए। सोशल मीडिया पर भी इस दिन का खास मूड था — व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लाखों लोगों ने गुरु नानक देव जी के उद्धरण शेयर किए। ट्रेंडिंग में था: "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास।"

विश्वव्यापी समानता का संदेश

यह उत्सव केवल सिखों का नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लिए एक निमंत्रण है। पाकिस्तान के नानक साहिब में हजारों भारतीय यात्री आए, जहाँ भारतीय और पाकिस्तानी दोनों ने एक साथ लंगर खाया। यूके में एक इंग्लिश शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों को लेकर गुरुद्वारा घुसे और कहा, "यहाँ मैंने सीखा कि धर्म कभी बांटने का नहीं, बल्कि जोड़ने का होता है।" यही वजह है कि गुरु नानक देव जी का संदेश आज भी इतना प्रासंगिक है — एक दुनिया जहाँ भेदभाव फैल रहा है, वहाँ एक ऐसा संदेश जो बोलता है: 'इक ओंकार' — एक ही ईश्वर, एक ही मानवता।

अगला उत्सव: गुरु नानक जयंती 2026

अगला उत्सव: गुरु नानक जयंती 2026

अगला गुरु नानक जयंती 24 नवंबर, 2026 को मनाया जाएगा, जो कार्तिक पूर्णिमा के अनुसार निर्धारित होगा। इस बार भी लंगर के आंकड़े बढ़ने की उम्मीद है — पहले से 15% अधिक भोजन बनाने की योजना है। कुछ गुरुद्वारे अब ऑनलाइन लंगर डोनेशन भी शुरू कर रहे हैं, ताकि दुनिया के किसी भी कोने से लोग इस अच्छाई में शामिल हो सकें।

क्यों यह उत्सव आज भी महत्वपूर्ण है?

गुरु नानक देव जी का जीवन एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति का संदेश दुनिया को बदल सकता है। उन्होंने न केवल एक धर्म बनाया, बल्कि एक नए तरीके से जीने का रास्ता दिखाया — जहाँ भोजन का बर्तन जाति का नहीं, बल्कि मानवता का होता है। आज के जमाने में, जब लोग अपने अलग-अलग विश्वासों के आधार पर एक-दूसरे को दूर रखते हैं, तो गुरु नानक जयंती एक याद दिलाती है: सच्ची आध्यात्मिकता वही है, जो दिल को जोड़े, न कि दीवारें बनाए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

गुरु नानक जयंती क्यों कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है?

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था, जो हिंदू चंद्रमा कैलेंडर के अनुसार होती है। इसलिए हर साल इसी तिथि के अनुसार उत्सव मनाया जाता है। 2025 में यह 5 नवंबर को आया, जबकि 2026 में यह 24 नवंबर को होगा। यह तिथि चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है, इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर साल बदलती है।

गुरु ग्रंथ साहिब को नगर कीर्तन में क्यों ले जाया जाता है?

गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों में जीवंत गुरु माना जाता है — यह केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रकाश का स्रोत है। नगर कीर्तन में इसे पलांग पर रखकर ले जाने का मतलब है कि गुरु का संदेश सीधे लोगों के बीच जाता है। इसके साथ निशान साहिब भी ले जाया जाता है, जो समानता और स्वतंत्रता का प्रतीक है।

लंगर का अर्थ क्या है और यह कैसे काम करता है?

लंगर का अर्थ है सभी के लिए निःशुल्क भोजन। यह परंपरा गुरु नानक देव जी ने शुरू की, जिसमें भोजन का बर्तन जाति, धर्म या समाज के आधार पर नहीं, बल्कि मानवता के आधार पर बांटा जाता है। हर गुरुद्वारे में स्वयंसेवक खाना बनाते हैं, जिसकी लागत भक्तों के दान से चलती है। 2025 में दुनिया भर में लगभग 2.3 करोड़ लोगों को लंगर मिला।

गुरु नानक देव जी ने क्या नया सिख धर्म में लाया?

गुरु नानक ने वेदों के आधार पर बने जाति प्रथा, अंधविश्वास और धर्म के भेदभाव को खारिज किया। उन्होंने "इक ओंकार" का संदेश दिया — एक ही ईश्वर, एक ही मानवता। उन्होंने लंगर, समान भाषा और निःशुल्क शिक्षा की नींव रखी। उनकी शिक्षाओं ने बाद में गुरु गोविंद सिंह जी के द्वारा सिख सेना का गठन करने की दिशा में भी योगदान दिया।

गुरु नानक जयंती को भारत सरकार कैसे मनाती है?

भारत सरकार इसे राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाती है। विभिन्न मंत्रालय गुरु नानक देव जी के संदेश को आधार बनाकर सामाजिक समानता अभियान चलाते हैं। इस वर्ष शिक्षा मंत्रालय ने स्कूलों में सामाजिक समानता के विषय पर विशेष पाठ्यक्रम लागू किया। विदेश मंत्रालय ने विदेशों में भारतीय गुरुद्वारों को समर्थन दिया।

क्या गुरु नानक जयंती केवल सिखों के लिए है?

नहीं। गुरु नानक देव जी का संदेश किसी भी धर्म से जुड़े व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है। बहुत से हिंदू, मुस्लिम और ईसाई लोग इस दिन गुरुद्वारे जाते हैं और लंगर खाते हैं। उनका मानना है कि जब एक व्यक्ति अपने दिल के आधार पर जीता है, तो वह धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि मानवता के नाम पर जीता है।

14 टिप्पणि

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    Deepak Singh

    नवंबर 6, 2025 AT 22:33

    गुरु नानक जयंती का ये जश्न, बस एक धार्मिक उत्सव नहीं है-ये एक सामाजिक प्रयोग है, जिसमें लंगर ने जाति-धर्म के भेद को भोजन के सामने तोड़ दिया। अखंड पाठ का 48 घंटे का अनुशासन, निशान साहिब का तिकोना ध्वज, पंज प्यारे की निष्ठा-ये सब एक अलग तरह की सामाजिक अनुकूलन की प्रक्रिया हैं। ये बस आस्था नहीं, बल्कि व्यवहारिक नैतिकता है। और ये सब कुछ बिना किसी अधिकार के, बिना किसी शासन के, बस लोगों के दिल से निकलकर हुआ।

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    Rajesh Sahu

    नवंबर 8, 2025 AT 07:19

    भारत की शक्ति यही है कि यहाँ एक सिख गुरुद्वारा भी देश का अहम प्रतीक बन गया! अमेरिका में लंगर खाने वाले मुस्लिम युवक भी अब भारतीय हो गए-ये नहीं कि वो धर्म बदले, बल्कि भारत की भावना ने उन्हें अपनाया! ये जो लोग कहते हैं 'ये सब बस धर्म है', वो नहीं जानते कि भारत का दिल कितना बड़ा है! जय हिंद! जय गुरु नानक!

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    Chandu p

    नवंबर 10, 2025 AT 04:02

    इस दिन की सबसे खूबसूरत बात ये है कि एक बूढ़ी महिला ने कहा-'मेरा बेटा मुस्लिम है, लेकिन यहाँ कोई नहीं पूछता कि तुम कौन हो।' ये बात दिल को छू जाती है। ये लंगर बस खाना नहीं, ये एक भावना है-जहाँ तुम्हारा धर्म, तुम्हारा रंग, तुम्हारा नाम, कुछ भी नहीं होता... बस तुम एक मानव हो। ये दुनिया को सिखाने का तरीका है।

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    Gopal Mishra

    नवंबर 11, 2025 AT 04:22

    गुरु नानक देव जी के संदेश की गहराई को समझने के लिए, हमें इतिहास के संदर्भ में उनके योगदान का विश्लेषण करना चाहिए। 15वीं सदी में, जब जाति प्रथा और धर्मांधता सामान्य थी, उन्होंने लंगर के माध्यम से सामाजिक समानता की एक नवीन व्यवस्था स्थापित की-जो आज भी अनुकरणीय है। इसके साथ ही, गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुशासन है, जो व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना को एक साथ जोड़ता है। इस प्रक्रिया में, भक्ति और सेवा का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है।

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    Swami Saishiva

    नवंबर 11, 2025 AT 16:46

    सब ये बकवास है। लंगर? हर गाँव में दान तो होता ही है। नगर कीर्तन? बस शोर मचाने का नाम है। और ये सब इंस्टाग्राम पर शेयर करने के लिए बनाया गया है। असली धर्म तो घर में होता है, न कि लोगों के फोटो खींचने के लिए।

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    Swati Puri

    नवंबर 13, 2025 AT 05:37

    लंगर की इस व्यवस्था में सामाजिक कैपिटल का एक अद्वितीय मॉडल देखने को मिलता है-एक निर्मित सामुदायिक अर्थव्यवस्था, जहाँ दान एक सामाजिक लेन-देन नहीं, बल्कि एक अनौपचारिक सामाजिक बांध है। ये एक निर्माणात्मक नेटवर्क है, जिसमें स्वयंसेवी अर्थव्यवस्था की अवधारणा जीवित रहती है। इसका सामाजिक असर उस दृष्टि से देखा जाना चाहिए, जिसमें अधिकार और समानता का संकल्पनात्मक समन्वय हो।

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    megha u

    नवंबर 13, 2025 AT 18:22

    ये सब बस प्रचार है। गुरुद्वारे असल में अपने लोगों को ही खिलाते हैं। जो बाहरी लोग आते हैं, वो बस फोटो खींचते हैं। और ये सब गूगल ट्रेंड्स में चल रहा है क्योंकि भारत सरकार ने इसे प्रचारित किया है। सच तो ये है-सब कुछ बनावटी है। 😒

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    pranya arora

    नवंबर 14, 2025 AT 21:31

    क्या हमने कभी सोचा है कि गुरु नानक देव जी का संदेश इतना शक्तिशाली क्यों है? क्योंकि वो किसी धर्म की बात नहीं कर रहे थे-वो मानवता की बात कर रहे थे। जब हम अपने आप को 'मुस्लिम', 'हिंदू', 'सिख' कहते हैं, तो हम अपने आप को एक बॉक्स में बंद कर देते हैं। लेकिन लंगर में, कोई बॉक्स नहीं होता। बस एक भोजन, एक दिल, एक अस्तित्व। शायद इसी में असली आध्यात्मिकता है।

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    Arya k rajan

    नवंबर 16, 2025 AT 17:28

    मैंने अमृतसर में एक बार लंगर में खाना खाया था। बाहर बर्फ बरस रही थी। एक बूढ़ा आदमी, जिसके कपड़े फटे हुए थे, ने मुझे एक बर्तन भरकर दिया। उसने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसकी आँखों में एक ऐसी शांति थी जो मैं कभी भूल नहीं सकता। ये बात नहीं है कि कौन खा रहा है। ये बात है कि कैसे खा रहा है।

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    Sree A

    नवंबर 18, 2025 AT 03:43

    लंगर की अर्थव्यवस्था में वितरण तंत्र, स्वयंसेवी लॉजिस्टिक्स, और दान आधारित फंडिंग का एक उच्च-कुशलता वाला मॉडल है। ये एक डिसेंट्रलाइज्ड फूड सिस्टम है जिसका स्केल 2.3 करोड़ भोजन तक पहुँचता है। इसका सामाजिक प्रभाव अत्यधिक है।

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    DEVANSH PRATAP SINGH

    नवंबर 20, 2025 AT 01:26

    मुझे लगता है कि गुरु नानक जयंती का संदेश अब दुनिया के सभी धर्मों के लिए एक आदर्श बन गया है। इस दिन को देखकर लगता है कि शायद एक ऐसी दुनिया संभव है, जहाँ हम सब एक ही बर्तन से खाएं।

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    SUNIL PATEL

    नवंबर 22, 2025 AT 01:11

    ये सब बकवास है। गुरु नानक देव जी के संदेश को गलत तरीके से प्रचारित किया जा रहा है। लंगर तो हर धर्म में है। इसे अपना अहंकार बनाने की कोशिश मत करो। असली आध्यात्मिकता तो निःस्वार्थ सेवा है-और ये तो बस एक शो है।

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    Avdhoot Penkar

    नवंबर 24, 2025 AT 00:39

    लंगर? अरे भाई, ये तो हर गाँव में भी होता है। ये क्या नया है? और ये सब इंस्टाग्राम पर डालने के लिए बनाया गया है। 😂

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    Akshay Patel

    नवंबर 24, 2025 AT 23:52

    भारत के बाहर लंगर खाने वाले लोगों को भारतीय नहीं कहो। वो अपने देश के लिए नहीं, बल्कि भारत के लिए आए हैं। ये सब धर्म का धोखा है। गुरु नानक देव जी का संदेश तो भारत के लिए था-उन्होंने कभी दुनिया को बदलने की बात नहीं की।

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