इज़राइल-ईरान युद्ध की संभावना: देशों ने अपने नागरिकों को लेबनान छोड़ने के लिए क्यों कहा

इज़राइल-ईरान युद्ध की संभावना: देशों ने अपने नागरिकों को लेबनान छोड़ने के लिए क्यों कहा

इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच लेबनान छोड़ने की अपील

इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच बढ़ते तनाव के कारण दुनिया के विभिन्न देशों ने अपने नागरिकों को तुरंत लेबनान छोड़ने की सलाह दी है। अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, और फ्रांस ने अपने नागरिकों को यात्रा चेतावनी जारी की है, जिसमें लेबनान की सुरक्षा स्थिति को गंभीर बताया गया है।

गोलन हाइट्स पर रॉकेट हमला और उसका प्रभाव

हाल ही में गोलन हाइट्स में हुए संदिग्ध हिज़बुल्लाह रॉकेट हमले में 12 द्रूज़ बच्चे और युवा मारे गए थे। यह घटना इज़राइल की प्रतिक्रिया को त्वरित करने का कारण बन सकती है। इज़राइल ने इस हमले का बदला लेने की धमकी दी है, जिससे संभावित सैन्य संघर्ष का डर बढ़ गया है।

अमेरिकी दूतावास ने बीरुत में अपने नागरिकों को संकट योजना तैयार करने और वहां से बाहर निकलने का निर्देश दिया है। जर्मनी ने भी अपने नागरिकों को चेतावनी दी है कि हवाई यात्रा जल्द ही निलंबित हो सकती है। इसके चलते लुफ्थांसा, स्विस इंटरनेशनल एयर लाइंस, एयर फ्रांस, और तुर्किश एयरलाइंस जैसी कई एयरलाइनों ने बीरुत के लिए उड़ानें निलंबित कर दी हैं।

हिज़बुल्लाह और उसके अत्यधिक प्रभाव

लेबनान सरकार ने हिज़बुल्लाह पर नियंत्रण करने में अपनी अपर्याप्तता जताई है, क्योंकि हिज़बुल्लाह को ईरान का समर्थन प्राप्त है और उसका लेबनान में काफी प्रभाव है। विशेषज्ञों का मानना है कि हिज़बुल्लाह के प्रति इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया से ईरान भी शामिल हो सकता है। इससे बड़ा संघर्ष खड़ा हो सकता है, जिसमें क्षेत्र के अन्य खिलाड़ी भी शामिल हो सकते हैं।

हिज़बुल्लाह की सैन्य क्षमताएं काफी बड़ी हैं, जिसमें कई मिसाइल और रॉकेट शामिल हैं। पूर्ण पैमाने पर युद्ध का संभावित असर बड़ा हो सकता है, जिसमें बड़ी संख्या में नागरिक हताहत हो सकते हैं और विनाश व्यापक हो सकता है।

ईरान का समर्थन और संभावित प्रभाव

ईरान का समर्थन और संभावित प्रभाव

वर्तमान तनाव में ईरान की भूमिका महत्वपूर्ण है। हिज़बुल्लाह को ईरान का व्यापक समर्थन प्राप्त है, जिससे स्थिति और जटिल हो जाती है। ईरान ने चेतावनी दी है कि अगर इज़राइल लेबनान पर हमला करता है तो यह 'विनाशकारी युद्ध' का कारण बन सकता है। यह स्थिति न केवल मध्य-पूर्व में तनाव को बढ़ा सकती है बल्कि अमेरिकी हितों और वैश्विक तेल कीमतों पर भी प्रभाव डाल सकती है।

ऐसे में जो क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, वह बहुत नाजुक हो गया है। यह स्पष्ट है कि इस भू-राजनैतिक परिवेश में न केवल संबंधित देश बल्कि सम्पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी परस्पर विरोधी गठबंधनों और खतरों की जटिल जाल में उलझा हुआ है। आने वाले दिनों में इस स्थिति में क्या मोड़ आता है, इस पर दुनिया की निगाहें टिकी रहेंगी।