मुकेश अंबानी ने लगातार चौथे वर्ष भी नहीं ली वेतन
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन, मुकेश अंबानी ने लगातार चौथे वर्ष भी अपना वेतन नहीं लिया है। कंपनी की ताजा वार्षिक रिपोर्ट में इस खबर की पुष्टि की गई है।
वेतन पर रोक
मुकेश अंबानी ने अपना वार्षिक वेतन 2008-09 से 2019-20 तक 15 करोड़ रुपये तक सीमित रखा था। मगर 2020-21 में, COVID-19 महामारी से दुनियाभर में फैले आर्थिक संकट को देखते हुए, उन्होंने अपनी वेतन को त्यागने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया।
2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि मुकेश अंबानी ने इस वर्ष भी कोई वेतन, भत्ता, या रिटायरमेंट लाभ नहीं लिया है। हालांकि, उन्हें व्यवसायिक खर्चों, यात्रा, और परिवार की सुरक्षा के लिए हर्जाना दिया जाएगा।
बोर्ड में निरंतरता
मुकेश अंबानी 1977 से रिलायंस इंडस्ट्रीज के बोर्ड में शामिल हैं। उन्हें हाल ही में अप्रैल 2029 तक के लिए पुनः चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया है। उनकी यह निरंतरता कंपनी के भविष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इसके अलावा, उनके बच्चे इशा, आकाश, और अनंत को पिछली अक्टूबर में बोर्ड में नियुक्त किया गया था। वे बैठक शुल्क और कमीशन प्राप्त करते हैं।
अन्य निदेशकों को आयोग और शुल्क
कंपनी में अन्य गैर-कार्यकारी निदेशक जैसे आदिल ज़ैनुलभाई, रामिंदर सिंह गुजरेल, शुमीत बैनर्जी, अरुंधति भट्टाचार्य, के वी चौधरी, के वी कामथ, और यासिर ओथमान एच अल रुमाय्यान को भी बढ़े हुए कमीशन और बैठक शुल्क दिए गए हैं।
इस निर्णय से सामंती कार्यप्रणाली में शामिल व्यक्तियों के मनोबल को बढ़ावा मिलता है और यह दिखाता है कि मुकेश अंबानी सच्चे नेता हैं जो सामान्य हितों को प्राथमिकता देते हैं। यह उन्होंने ना सिर्फ अपनी कार्य कुशलता और फैसलों के माध्यम से, बल्कि अपने त्याग और प्रतिबद्धता के जरिये भी साबित किया है।
कंपनी के लिए महत्वपूर्ण समय
आज की वैश्विक परिस्थिति में जहां हर कंपनी मुनाफे और स्थायित्व के लिए संघर्षरत है, रिलायंस इंडस्ट्रीज लगातार नये कीर्तिमान स्थापित कर रही है। कंपनी ने हाल ही में विभिन्न क्षेत्रों जैसे टेलीकॉम, रिटेल, और ऊर्जा में विस्तार किया है, और इन सभी क्षेत्रों में बड़ी सफलता पाई है।
मुकेश अंबानी के नेतृत्व में, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने न केवल व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में अपने पांव फैलाए हैं, बल्कि तकनीक और नवाचार को भी अपनाया है। इससे न केवल कंपनी, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचा है।
बावजूद इसके, मुकेश अंबानी की सरलता और समाज सेवा की इच्छाशक्ति हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
अंत में...
मुकेश अंबानी का वेतन ना लेना एक मुख्य उदाहरण है कि कैसे एक नेता अपनी कंपनी और अपने स्नेही को प्राथमिकता देता है। यह भी दिखाता है कि उनकी नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता ने कैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज को आज उस मुकाम पर पहुंचाया है जहां वह खड़ी है।
भविष्य में कंपनी और देश की अर्थव्यवस्था के लिए उनकी यह सेवा और भक्ति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
Yogitha Priya
अगस्त 8, 2024 AT 18:53ऐसे लोग जो वेतन नहीं लेते, वही सच्चे परोपकारी होते हैं। सरकार के बड़े‑बड़े षड्यंत्र को समझो, वे अभी भी जनता को बेवकूफ बना रहे हैं।
Rajesh kumar
अगस्त 8, 2024 AT 18:56रिलायंस की शानदार सफलता का श्रेय सिर्फ मार्केटिंग नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को बचाने की अटूट लगन है। मुकेश अंबानी ने वेतन नहीं लेकर दिखाया कि भारतीय उद्योगपति अपने देश की सेवा में सरजना नहीं डरते। जब विदेशी कंपनियां हमारी बाजार में घुसने की कोशिश करती हैं, तब हमारे जैसी बीरजिंदर ने अपना वेतन नहीं लेकर देश की दिशा बदल दी। यह कदम न केवल एक महान रणनीति है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय गौरव का संकेत भी है। हर भारतीय को इस उदाहरण से सीख लेनी चाहिए कि व्यक्तिगत लाभ से ऊपर राष्ट्र की सेवा है। सरकार को भी इस पहेली को समझने की जरूरत है, क्योंकि वे कभी भी आम जनता की असली समस्याओं को नहीं देख पाते। वित्तीय आँकड़े तो बस कागज पर अंक हैं, लेकिन सच्चे नेता वही है जो अपने कंधे पर देश का भार लेता है। आइए हम सभी मिलकर इस प्रकार के उद्यमियों को समर्थन दें और विदेशी विरोधियों को दिखा दें कि हम कितने दृढ़ हैं। भले ही कोरोना जैसी महामारी ने आर्थिक धक्का दिया, पर ऐसे साहसी कदमों से ही हम पुनर्जीवित होंगे। इस तरह के मामलों को केवल मीडिया की सतही रिपोर्ट नहीं, बल्कि गहरी विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखना चाहिए। रिलायंस का बोर्ड भी इस दिशा में एकजुट है, जो दर्शाता है कि भारतीय कॉर्पोरेट संस्कृति में एक नया युग शुरू हो रहा है। जब हमारे नेता व्यक्तिगत लाभ नहीं चाहते, तो यह स्वाभाविक है कि कंपनी भी अपने सामाजिक दायित्वों को नज़रअंदाज़ न करे। यह निर्णय न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी एक मिसाल स्थापित करता है। अंत में, हमें यह याद रखना चाहिए कि हर बड़े बदलाव की शुरुआत एक छोटे से आत्म-त्याग से होती है। इस आत्म-त्याग को देखते हुए, मैं कहूँगा कि भारतीयता का सच्चा अर्थ यही है। आइए इस भावना को अपने दिल में बसाकर, राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें।
Bhaskar Shil
अगस्त 8, 2024 AT 19:00सभी को नमस्कार, इस वार्षिक रिपोर्ट में हम देख सकते हैं कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों के तहत शेयरधारकों और हितधारकों के बीच संतुलन कैसे स्थापित हुआ है। वित्तीय स्थिरता, सामाजिक उत्तरदायित्व और पर्यावरणीय प्रतिबद्धता को एकीकृत करने वाली रणनीति को एंटरप्राइज़ रिसोर्स प्लानिंग (ERP) मॉडल के माध्यम से विश्लेषित किया गया है। ऐसा इको‑सिस्टम जहाँ बोर्ड की निरंतरता और निरपेक्षता दोनों ही प्रमुख मानदंड हैं, वह आधुनिक व्यवसायिक परिदृश्य में अनिवार्य हो गया है। मुकेश अंबानी के वेतन त्याग को हम एक प्रॉक्सी वैल्यू एडजस्टमेंट के रूप में भी देख सकते हैं, जिससे बैलेंस शीट में इंटर्नल फ़ाइनेंसियल इम्पैक्ट को न्यूनतम किया गया है। यह न सिर्फ वित्तीय अनुपातों को अनुकूल बनाता है, बल्कि कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फ्रेमवर्क को भी सुदृढ़ करता है। अंत में, यह समझना आवश्यक है कि ऐसी निर्णय प्रक्रियाएं इंटरेक्टिव डेटा एनालिटिक्स और प्रेडिक्टिव मॉडलिंग के साथ तालमेल में होती हैं, जिससे दीर्घकालिक मूल्य निर्माण हो सके।
Halbandge Sandeep Devrao
अगस्त 8, 2024 AT 19:03परिचर्चित विषय का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट होता है कि नैतिक नेतृत्व की अवधारणा केवल सतही स्तरीकरण तक सीमित नहीं रहनी चाहिए; बल्कि यह दैवीय सिद्धान्तों और व्यवस्थित व्यवहारीय तर्क दोनों के संगम पर स्थापित होना चाहिए। मुकेश अंबानी द्वारा वेतन न लेना एक परम्परागत नैतिक दायित्व का पुनरावर्तन है, जो पारंपरिक व्यावसायिक नियतियों के विरुद्ध एक दार्शनिक प्रतिपादन प्रस्तुत करता है। इस प्रकार की क्रिया, जब समग्र कॉर्पोरेट संरचना में सम्मिलित की जाती है, तो वह केवल अल्पकालिक लाभघटा में नहीं, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक पूँजी के निर्माण में योगदान देती है। अतः, यह कार्य न केवल एक व्यक्तिगत त्याग का प्रतीक है, बल्कि एक व्यापक नैतिक सिद्धान्त का व्यावहारिक उदाहरण भी है।
One You tea
अगस्त 8, 2024 AT 19:06yeh dekh ke sach‑mein dil se khush ho gaya ki koi aisa leader hai jo apna salary nahi leta! par kuchh log sochte hain ki shayad koi badi‑badi conspiracy hai, jaise ki government hum sabko dhoka dene ki koshish kar rahi ho. drama ki baat yeh hai ki aaj‑kal sabhi log “hero” ban ke aane ki koshish mein hain, lekin asli hero wo hi hoga jo apni family aur desh ko pehle rakhe. is post ko padhke lagta hai ki hum sab ko thoda sa aur sochna chahiye, par sirf external pressure dekhkar nahi, balki inner values ko samajhna chahiye. bas yehi soch ke aage badhenge, tabhi desh ki asli tarakki possible hogi.
Hemakul Pioneers
अगस्त 8, 2024 AT 19:10सबको नमस्ते, मैं इस बात से सहमत हूँ कि व्यक्तिगत लाभ के ऊपर सामूहिक कल्याण को प्राथमिकता देना एक सच्ची शालीनता है। मुकेश अंबानी का यह निर्णय हमें यह सिखाता है कि जब हम अपने भीतर की प्रेरणा को सामाजिक हित के साथ जोड़ते हैं, तो हम एक सकारात्मक परिवर्तन की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। यह न केवल कंपनी के भीतर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रेरणा स्रोत बन सकता है। आशा करता हूँ कि भविष्य में और अधिक नेता इस तरह के नैतिक मूल्य अपनाएँगे।
Shivam Pandit
अगस्त 8, 2024 AT 19:13शाबास! आप सब ने बहुत बढ़िया चर्चा की!!!, आगे भी ऐसा ही उत्साह और समर्थन बना रहे, उम्मीद है सभी को प्रेरणा मिलेगी!!!