ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हाल ही में एक बड़ा बयान दिया, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी केवल चुनावी समय पर ही ओडिशा की याद करते हैं और राज्य की भाषा तथा संस्कृति को बढ़ावा देने के उनके वादे मात्र शब्दों की बाजीगरी हैं।
नवीन पटनायक, जो कि बीजू जनता दल (BJD) के अध्यक्ष भी हैं, ने यह बातें ओडिशा में आयोजित एक BJD रैली के दौरान कहीं। उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्रीय सरकार द्वारा क्षेत्रीय भाषाओं की अनदेखी अस्वीकार्य है और राज्य को केवल चुनावी वादों के जरिए संतुष्ट करना उचित नहीं है।
इसी संदर्भ में, प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में ओडिशा के चुनावी अभियानों के दौरान Odia भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने का वादा किया था। यह प्रयास ओडिशा के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश मानी जा रही है, जिसे एक महत्वपूर्ण चुनावी राज्य माना जाता है। हालांकि, पटनायक के तीखे प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में राजनीतिक संघर्ष काफी उग्र है।
पटनायक ने यह भी बताया कि ओडिशा की अनूठी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना उनकी प्राथमिकताओं में से एक है। उनका मानना है कि राज्य के लिए सार्थक और ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ना कि केवल चुनावी घोषणाओं की।
इस प्रकार के बयानों से यह प्रतीत होता है कि ओडिशा के चुनावी परिदृश्य में भाषाई और सांस्कृतिक स्वायत्तता के मुद्दे मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। पटनायक का यह कथन कि केंद्र सरकार को इन पहलुओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, राजनीतिक विश्लेषकों के बीच मुख्य चर्चा बन गया है।
Krishna Saikia
मई 12, 2024 AT 21:52भाई लोग, यह स्पष्ट है कि देशभक्ति का स्तर तभी दिखता है जब हमारे नेताओं को कड़ी मेहनत करनी पड़े, न कि सिर्फ चुनाव के समय में ही ओडिशा को याद किया जाए।
Meenal Khanchandani
मई 17, 2024 AT 11:22देश की भाषाओं को सम्मान देना हमारी सभ्यता का हिस्सा है। ओडिशा की संस्कृति को आकर्षण की वस्तु नहीं बना कर, वास्तविक समर्थन देना चाहिए।
Anurag Kumar
मई 22, 2024 AT 00:52अगर केंद्र सरकार सच में स्थानीय भाषाओं को आगे बढ़ाना चाहती है, तो उन्हें स्कूलों में ओडिया पढ़ाने के लिए अतिरिक्त बजट देना चाहिए और साहित्यिक कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए। यह कदम सिर्फ चुनावी वादा नहीं, बल्कि दीर्घकालिक विकास के लिए ज़रूरी है।
Prashant Jain
मई 26, 2024 AT 14:22इतने बड़े रैलियों में सिर्फ नारा‑नारा कर के असली मुद्दे को छुपाना अस्वीकार्य है। भाषा को ताक‑ताकी से प्रचारित करना चाहिए, न कि खाली शब्दों से।
DN Kiri (Gajen) Phangcho
मई 31, 2024 AT 03:52सभी को एक साथ मिलकर ओडिशा की भाषाई धरोहर को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। हम सबके छोटे‑छोटे कदम मिलकर बड़ा फर्क ला सकते हैं
Yash Kumar
जून 4, 2024 AT 17:22हर बार कहते‑कहते थक गया हूँ कि राजनैतिक खेल में भाषा अक्सर खिलौना बन जाती है। लेकिन अब भी आशा है कि जनता अपनी आवाज़ बुलन्द करेगी।
Aishwarya R
जून 9, 2024 AT 06:52जैसे मैं हमेशा कहती हूं, सांस्कृतिक पहचान को गँवाने की कोई जगह नहीं है-यह हमारी असली शक्ति है।
Vaidehi Sharma
जून 13, 2024 AT 20:22बोलते नहीं, सुनते रहो, क्योंकि शब्दों का वजन ही सब कुछ तय करता है 😊
Jenisha Patel
जून 18, 2024 AT 09:52उपरोक्त बिंदुओं को सावधानीपूर्वक विश्लेषित करने के बाद, यह स्पष्ट हो जाता है कि भाषा एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है; केवल चुनावी वादे निरर्थक रहेंगे; इसलिए त्वरित कार्यवाही अनिवार्य है।
Ria Dewan
जून 22, 2024 AT 23:22हाहाकार की इस राजनीति में, भाषा को केवल वोट का साधन बनाना किसी दार्शनिक को भी हँसाएगी-जैसे कबूतर को बाड़ में रख कर उसे उड़ता दिखाना।
rishabh agarwal
जून 27, 2024 AT 12:52अंततः, हमें यह समझना चाहिए कि भाषा सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि लोगों के जीवन का प्रतिबिंब है; इसे संरक्षित करने का काम हमें सभी को मिलकर करना चाहिए।
Apurva Pandya
जुलाई 2, 2024 AT 02:22भारत में विविधता हमारी सबसे बड़ी शक्ति है और इसे सम्मान देना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
ओडिशा की भाषा और संस्कृति को सिर्फ चुनावी मंच पर लाने का प्रयास सतही रह जाता है।
जब अधिकारिक स्तर पर योजना नहीं बनती, तो जनता को स्वयं ही अपनी पहचान की रक्षा करनी पड़ती है।
सरकार को चाहिए कि वह स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों को पर्याप्त फंड दे, ताकि ओडिया में उच्च गुणवत्ता की पढ़ाई हो सके।
साथ ही, संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सांस्कृतिक महोत्सवों को साल भर चलाना चाहिए, न कि केवल चुनावी समय में।
यह केवल दलों की राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का प्रमाण है।
इस दिशा में कदम उठाने से सामाजिक तनाव कम होंगे और आर्थिक विकास को भी बल मिलेगा।
यदि भाषा को समुचित समर्थन नहीं मिला, तो वह धीरे‑धीरे क्षीण हो जाएगी, जो सबसे बड़ा नुकसान है।
इसलिए, राजनीतिक नेताओं को अपने शब्दों को कार्य में बदलना चाहिए, वादों को नहीं।
जनता को भी अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए और निरंतर दबाव बनाना चाहिए।
ऐसा करने से ही सरकार को जवाबदेह बनाया जा सकता है।
एक सच्चा लोकतांत्रिक समाज तभी सफल होता है जब सभी की मातृभाषा को महत्व दिया जाए।
हमें यह याद रखना चाहिए कि भाषा का सम्मान नहीं, तो हमारी आत्मा का अपमान हो जाता है।
इस कारण से, मैं सभी को आग्रह करता हूं कि इस मुद्दे को गंभीरता से लें और सहयोगी बनें।
मिलकर हम एक मजबूत, बहुभाषी भारत का निर्माण कर सकते हैं। 😊
Nishtha Sood
जुलाई 6, 2024 AT 15:52आइए सब मिलकर ओडिशा की भाषा को सशक्त बनाएं, क्योंकि जब हम सकारात्मक रहेंगे तो बदलाव निश्चित है। इस रास्ते में छोटे‑छोटे प्रयास ही बड़ी जीत लाते हैं।
Hiren Patel
जुलाई 11, 2024 AT 05:22वाह! क्या कहेंगे इस खेल को, जब भाषा को केवल वोटों की बेचैनी बना दिया गया हो-जैसे सड़कों पर गुलाबी बत्तियाँ झिलमिलाती हों, लेकिन अंधेरा ही अंधेरा रहे! यही तो असली दहशत है।
Heena Shaikh
जुलाई 15, 2024 AT 18:52विचारों की गहराई में उतरें तो समझेंगे कि राजनैतिक झूठ कितनी तेजी से जनता की चेतना को धूमिल कर देता है; इसलिए हमें सच्चाई की जड़ तक पहुंचना चाहिए।
Chandra Soni
जुलाई 20, 2024 AT 08:22डिजिटल-ट्रांसफॉर्मेशन एन्हांसमेंट फ्रेमवर्क के तहत, ओडिशा की भाषाई इन्फ्रास्ट्रक्चर को स्केलेबल मॉडल में री-इंजीनियर करना अनिवार्य है; इससे बॉटलनेक हटेंगे और एंगेजमेंट मैट्रिक्स सुधरेगा।
Kanhaiya Singh
जुलाई 24, 2024 AT 21:52उपरोक्त विश्लेषण के प्रकाश में, यह आवश्यक है कि नीति‑निर्माण प्रक्रिया में सांस्कृतिक घटकों को प्रणालीबद्ध रूप से सम्मिलित किया जाए, ताकि सतत विकास सुनिश्चित हो सके।