NEET 2020 फर्जीवाड़ा: AIIMS जोधपुर के छात्र ने डमी कैंडिडेट के जरिए 60 लाख की ठगी, दो डॉक्टर गिरफ्तार

NEET 2020 फर्जीवाड़ा: AIIMS जोधपुर के छात्र ने डमी कैंडिडेट के जरिए 60 लाख की ठगी, दो डॉक्टर गिरफ्तार

NEET 2020: पैसे के बदले डॉक्टर बनने का ख्वाब, बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया

सोचिए, अगर देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज AIIMS में एडमिशन के लिए NEET जैसी सख्त परीक्षा भी भरोसेमंद न रहे, तो आम छात्रों के मन में कितना डर बैठ जाएगा। राजस्थान पुलिस ने एक ऐसे ही चौंकाने वाले मामले का पर्दाफाश किया है, जिसमें NEET 2020 परीक्षा में 60 लाख रुपये का भारी-भरकम सौदा कर पूरा खेल रच दिया गया। AIIMS जोधपुर में MBBS अंतिम वर्ष का छात्र सचिन गोरा पुलिस की पकड़ में आया है। सचिन पर आरोप है कि उसने खुद परीक्षा दिए बिना ही किसी और से अपना पेपर दिलवाया और शानदार नंबर पाकर कॉलेज में सीट हथिया ली।

मामले की तह तक जाएं तो, इस स्कैम का मास्टरमाइंड अकसर उन डॉक्टरों में से है, जिन पर छात्रों का भरोसा रहता है। यहीं से शुरू हुई साजिश की कहानी। डॉ. अजीत गोरा, जो खुद भी डॉक्टर हैं, ने सचिन की जगह परीक्षा दी। इतना ही नहीं, दस्तावेजों में फोटो से लेकर फिंगरप्रिंट तक सबकुछ बदलने का प्लान बना। इसमें मदद की डॉ. सुभाष सैनी ने, जो नागौर के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी हैं और इससे पहले भी नीट-पीजी घोटाले में जेल जा चुके हैं।

फर्जी डॉक्यूमेंट्स और बड़ा नेटवर्क: छुपी हुई जड़ों की तलाश में पुलिस

2020 की परीक्षा में सचिन गोरा को 667 नंबर मिले। ये इतनी बड़ी बात है कि मेडिकल में दाखिला पक्का ही मान सकते हैं। लेकिन जांच में पता चला कि सचिन असल में सेंटर पहुंचा ही नहीं था। उसकी जगह डॉ. अजीत ने डमी कैंडिडेट बनकर एग्जाम दिया। इसके लिए लगभग 60 लाख रुपये बतौर सौदा तय हुआ था। जांच में केंद्र की CCTV फुटेज, लॉगबुक और फिंगरप्रिंट से गड़बड़ी उजागर हुई। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) ने रिकॉर्ड में फोटो मिलान न होने की जानकारी दी, जिससे सचिन के खिलाफ मामला खुल गया।

पुलिस को आशंका है कि सिर्फ एक-दो छात्र ही नहीं, बल्कि और भी कई छात्र इस जालसाजी का हिस्सा रहे हैं। डॉ. सुभाष सैनी की भूमिका पर खास नजर रखी जा रही है, जो पहले भी 2013 में करीब 65 लाख की नीट पीजी फर्जीवाड़े में गिरफ्तार हो चुके हैं। पुलिस का मानना है कि ये पूरा गिरोह एक संगठित नेटवर्क चलाता है, जो पढ़ाई के बजाय पैसे के बल पर छात्र-छात्राओं को मेडिकल में दाखिला दिलवाता है।

इस केस ने उन गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है, जो भारत के मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम सिस्टम में अभी तक बनी हुई हैं। फिंगरप्रिंट और बॉयोमेट्रिक व्यवस्था के बावजूद फर्जी कैंडिडेट्स परीक्षा केंद्रों में घुस जाते हैं। इतना ही नहीं, मोटी रकम लेकर एग्जाम बदलवाने की यह मंडी बड़े डॉक्टरों और अफसरों की मिलीभगत से चलाई जा रही है।

आने वाले दिनों में पुलिस देशभर में ऐसे और उदाहरण जोड़ने वाली है। जिन छात्रों का जीवन दांव पर लगा है, उनके लिए ये खबर डराने वाली है। अब सवाल यही है—क्या आगे एग्जाम की सख्ती और नियमों में सुधार होगा, या फिर इस तरह के स्कैम हमारे सिस्टम को हर साल झकझोरते रहेंगे?