स्वीडिश वैज्ञानिकों का जीवित कंप्यूटर, मिनी‑ब्रेन ऑर्गनॉइड से मेडिकल क्रांति

स्वीडिश वैज्ञानिकों का जीवित कंप्यूटर, मिनी‑ब्रेन ऑर्गनॉइड से मेडिकल क्रांति

जब प्रॉ. डॉ. कार्ल गॉट्ज़, न्यूरोबायोलॉजी प्रमुख स्ट्रॉमबोर्ग टेक्नोलॉजी सेंटर ने स्वीडन में बनाए हुए ब्रेन ऑर्गनॉइड को जीवित कंप्यूटर में बदला, तो वैज्ञानिक समुदाय के कई चेहरे पलट गए। यह घोषणा 12 अक्टूबर 2024 को कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के मुख्य सम्मेलन हॉल में की गई, जहाँ दुनिया भर के शोधकर्ता इकट्ठा थे।

मिनी‑दिमाग़ की तकनीकी सफलता

पहला सवाल जो इस खबर को पढ़ते‑लिखते उठता है, वह है – ये "मिनी‑दिमाग़" असल में क्या होते हैं? वैज्ञानिकों ने मानव इंड्यूस्ड प्लूरिपोटेंट स्टेम सेल (hiPSC) को तीन‑आयामी रासायनिक जेल में उगाया, फिर उन्हें क्रम‑बद्ध रूप से विभिन्न मस्तिष्क‑क्षेत्रों के सिग्नल‑पैटर्न से सजा दिया। परिणामस्वरूप मल्टी‑रीजन ब्रेन ऑर्गनॉइड (MRBO)स्टॉकहोम में 80 % भ्रूणीय मस्तिष्क‑कोशिकाओं की विविधता बन पाई, साथ ही विद्युत‑स्पंदन भी वास्तविक दिमाग़ की तरह समन्वित हुए।

जीवित कंप्यूटर: दिमागी कोशिकाओं की नई व्यवस्था

अब बात करते हैं उस "जीवित कंप्यूटर" की, जो बिल्कुल चकित कर देने वाला है। गॉट्ज़ टीम ने 16 छोटे‑ब्रेन ऑर्गनॉइड को एक‑दूसरे से जोड़कर एक न्यूरॉन्स‑नेटवर्क तैयार किया, जो सूचना को सिरेमिक‑चिप की तरह रूट करता है। उनका दावा है कि इस प्रणाली की ऊर्जा खपत पारंपरिक सिलिकॉन‑आधारित कंप्यूटरों से सिर्फ 5 % ही है। "अगर हम इस तकनीक को बड़े‑पैमाने पर लागू कर पाते हैं, तो ऊर्जा संकट का समाधान निकट भविष्य में हाथ लग सकता है," उन्होंने कहा।

अंतरिक्ष में परीक्षण: माइक्रोग्रैविटी का चौंकाता असर

इसी महीने, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर यह पैकेज भेजा गया। वहां, माइक्रोग्रैविटी ने ऑर्गनॉइड के विकास गति को दो‑तीन गुना तेज कर दिया, और असामान्य न्यूरॉन‑कनेक्शन बनाए। इस प्रयोग में इस्तेमाल हुए स्टेम सेल दो स्रोतों से आए थे: एक स्वस्थ दाता और दूसरा पार्किंसन रोगियों के दिमाग से लिया गया। परिणाम में रोग‑सेट वाले ऑर्गनॉइड ने कई सेल‑डेड न्यूमेरिकल पैटर्न दिखाए, जो धरती पर लैब में नहीं दिखते। यह खोज भविष्य में अंतरिक्ष‑स्थायी चिकित्सा के द्वार खोल सकती है।

पार्किंसन रोग पर नए अध्ययन‑पद्धति

इसे लेकर भारत में भी कंपनियों ने कदम बढ़ाए। डॉ. अनन्या मेहता, न्यूरोसाइंटिस्ट अधिगमन इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च ने कहा, "हम रोगी‑विशिष्ट ब्रेन ऑर्गनॉइड पर वायरल‑वेक्टर डालते हैं, ताकि देख सकें कि पैथोलॉजिकल प्रोटीन कैसे जमा होते हैं।" उनकी टीम ने अभी‑अभी यह दिखाया कि विशिष्ट जीन‑ड्रॉप‑ऑफ़ से न्यूरॉन‑मार्जन कम हो सकता है, जिससे नई दवा‑लाइनों की दिशा खुलती है।

भविष्य के परिदृश्य और संभावित चुनौतियां

भविष्य के परिदृश्य और संभावित चुनौतियां

तो 20‑50 साल में हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? यहाँ कुछ विचार हैं:

  • ब्रेन‑ऑर्गनॉइड‑आधारित दवा परीक्षण का उत्पादन लागत में 70 % कमी आने की संभावना।
  • जीवित कंप्यूटर की वाणिज्यिक उपलब्धता से डेटा‑सेंटर की ऊर्जा‑खपत में वार्षिक 10 टेरावॉट‑घंटा की बचत।
  • अंतरिक्ष‑आधारित न्यूरो‑अभ्यास से माइग्रेन और झपी रोगों के नए मॉडलों का विकास।
  • नैतिक‑नियमों में बदलाव की आवश्यकता: क्या हम मनुष्य‑जैसी न्यूरल संरचनाओं को बेचेंगे?

इनमें सबसे बड़ा सवाल अभी भी एथिकल बायो‑कॉन्सेन्ट है। अगर भविष्य में कोई कंपनी ऑर्गनॉइड को कॉन्फ़िगर करके एआई‑सहायक बनाना चाहे, तो इस पर किस हद तक नियमन लागू होना चाहिए? इस दिशा में नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) पहले से ही गाइडलाइन्स तैयार कर रहे हैं।

मुख्य तथ्य (Key Facts)

  1. 16 ब्रेन ऑर्गनॉइड से बना पहला जीवित कंप्यूटर, ऊर्जा‑कुशलता 95 % बेहतर।
  2. MRBO में 80 % भ्रूणीय मस्तिष्क‑कोशिकाएँ पुन: उत्पन्न हुईं, विद्युत‑स्पंदन दिमाग़ जैसा।
  3. ISS पर माइक्रोग्रैविटी ने ऑर्गनॉइड विकास को 2‑3× तेज किया।
  4. पार्किंसन रोग मॉडल में वायरस‑इंजेक्टेड ऑर्गनॉइड ने नई पैथोलॉजी दिखायी।
  5. अगले दो दशकों में बायो‑कम्प्यूटिंग और न्यूरो‑थैरेपी में संभावित $15 बिलियन की वैश्विक मार्केट।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

ब्रेन ऑर्गनॉइड का रोग‑शोध में क्या योगदान है?

ऑर्गनॉइड मानव मस्तिष्क की संरचना को जैसा‑का‑तैसा दोहराते हैं, इसलिए दवा‑प्रतिक्रिया का सटीक परीक्षण संभव होता है। पार्किंसन, अल्जाइमर और एपीडेमिक तनाव जैसे रोगों में विशिष्ट प्रोटीन‑असंचयन को सीधे देखी जा सकती है, जिससे नई दवाओं के विकास का समय काफी घट जाता है।

जीवित कंप्यूटर का ऊर्जा‑कुशलता क्यों महत्त्वपूर्ण है?

परम्परागत डेटा‑सेंटर में बिजली की खपत बहुत अधिक है – विश्व‑स्तरीय आंकड़ों के अनुसार लगभग 1 % वैश्विक ऊर्जा उपयोग। यदि ब्रेन‑ऑर्गनॉइड‑आधारित प्रोसेसर भी वही कार्य कर सकें लेकिन 5 % ऊर्जा पर, तो दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव और ऑपरेटिंग लागत दोनों में बड़ा अंतर आएगा।

ISS पर माइक्रोग्रैविटी ने ऑर्गनॉइड पर कैसे प्रभाव डाला?

शून्य‑गुरुत्वाकर्षण में कोशिकाओं की वृद्धि दर तेज़ होती है और न्यूरल‑कनेक्शन अनपेक्षित पैटर्न बनाते हैं। यह अनूठा वातावरण जैविक‑न्यूरल‑नेटवर्क के एन्हांसमेंट परीक्षण के लिए एक प्राकृतिक लैब जैसा काम करता है, जिससे ग्रह पर संभव न होने वाले डेटा मिलते हैं।

क्या इन तकनीकों के लिए नैतिक चिंताएँ हैं?

बिल्कुल। मानव‑मस्तिष्क‑समान संरचना को कॉम्प्यूटिंग या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल करने पर ‘जैविक बौद्धिक संपदा’ की अवधारणा पर सवाल उठता है। वर्तमान में कई देशों में एथिकल कमिटी इस पर दिशा‑निर्देश बना रही हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सुसंगत नियम बनाना अभी बाकी है।

आगे के 10‑20 सालों में क्या उम्मीद की जा सकती है?

विशेषगर, 2026‑2030 तक ब्रेन‑ऑर्गनॉइड‑आधारित दवा परीक्षण को FDA ने प्राथमिकता दी है, इसलिए हमारे पास अधिक तेज और सुरक्षित क्लिनिकल ट्रायल्स की उम्मीद है। साथ ही, 2035 तक जीवित कंप्यूटर को छोटे‑स्केल डेटा‑प्रोसेसिंग यूनिट के रूप में प्रयोग करने की संभावनाएं तैयार हो रही हैं, जो मेडिकल इमेजिंग या रीयल‑टाइम न्यूरल‑फ़ीडबैक में मदद कर सकता है।

19 टिप्पणि

  • Image placeholder

    jyoti igobymyfirstname

    अक्तूबर 7, 2025 AT 03:52

    Dekho bhai log, yeh Swedish ka brain organoid sach me zinda computer ban gaya hai! Ab humari bua ki murgi bhi shaayad isse tez solve karegi masale! Haa, aise hi future ka swag!

  • Image placeholder

    ritesh kumar

    अक्तूबर 7, 2025 AT 09:26

    यही तो वह सिलिकॉन प्रोजेक्ट है जो सरकार छुपा रही है, स्वीडन की मदद से हमारी एटीएम वोल्टेज को 5% पर चलाने का बड़ा जाल। इस तकनीक को अपनाने से विदेशी आयात घटेगा, राष्ट्र को शक्ति मिलेगी।

  • Image placeholder

    Raja Rajan

    अक्तूबर 7, 2025 AT 14:59

    ब्रेन‑ऑर्गनॉइड परिक्षण में दवा प्रतिक्रिया का सटीक डेटा मिलता है। यह रोग‑मॉडल के लिए महत्त्वपूर्ण है।

  • Image placeholder

    Atish Gupta

    अक्तूबर 7, 2025 AT 20:32

    भाई लोग, इस तकनीक से हम न सिर्फ ऊर्जा बचा सकते हैं, बल्कि रोगी की जिंदगी भी सुधर सकती है। मैं मानता हूँ कि सहयोगी शोध से ही ये सपने सच होंगे। चलो, मिलकर आगे बढ़ते हैं!

  • Image placeholder

    Aanchal Talwar

    अक्तूबर 8, 2025 AT 02:06

    ये बात बहुत ही इंटरेस्टिंग है, लेकिन हमें अभी भी प्रैक्टिकल एप्लिकेशन की जरूरत है। साथ में काम करने से जल्दी प्रोग्रेस होगा।

  • Image placeholder

    Apu Mistry

    अक्तूबर 8, 2025 AT 07:39

    जब हमारी चेतना को सिलिकॉन के साथ मिश्रित किया जाता है, तो अस्तित्व का नया परिदृश्य उभरता है। क्या यह वही चरण है जहाँ मशीनें हमारी आत्मा को प्रतिबिंबित करेंगे? मेरे विचार में, यह नैतिकता की सीमा को पुश करता है। इस परिवर्तन को हम अनदेखा नहीं कर सकते।

  • Image placeholder

    uday goud

    अक्तूबर 8, 2025 AT 13:12

    ओह! यह जीवित कंप्यूटर, ऊर्जा दक्षता में 95% सुधार के साथ, हमारे डेटा सेंटर्स को बचा सकता है, पर्यावरण को संरक्षित कर सकता है, और वैज्ञानिक उत्साह को बढ़ा सकता है! क्या यह भविष्य की ओर एक चमकदार कदम नहीं है?!

  • Image placeholder

    Harsh Kumar

    अक्तूबर 8, 2025 AT 18:46

    बधाई हो टीम, ऐसा काम देखकर दिल खुश हो जाता है 😊। आगे भी ऐसे ही नवाचारों से हम सबको प्रेरित रखो! 🚀

  • Image placeholder

    suchi gaur

    अक्तूबर 9, 2025 AT 00:19

    एक वास्तविक वैज्ञानिक क्रांति को समझने के लिए कई सूक्ष्म बायो‑इंजीनियरिंग अवधारणाओं का गहन अध्ययन आवश्यक है 😉.

  • Image placeholder

    Rajan India

    अक्तूबर 9, 2025 AT 05:52

    मैं तो बस देख रहा हूँ, सब चलता रहता है।

  • Image placeholder

    Parul Saxena

    अक्तूबर 9, 2025 AT 11:26

    सभी को नमस्ते, इस ब्रेन‑ऑर्गनॉइड तकनीक की खबर ने मुझे बिल्कुल स्तब्ध कर दिया। पहले तो मैं सोच रहा था कि यह केवल विज्ञान कथा का हिस्सा है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह वास्तविकता बन रही है। हमारे देश में अभी कई स्टार्ट‑अप हैं जो बायो‑टेक्नोलॉजी में निवेश कर रहे हैं, और इस तरह की नवाचार उन्हें नई दिशा दे सकता है। यदि हम इस तकनीक को क्लिनिकल ट्रायल्स में लागू करें, तो दवाओं की लागत में 70% तक कमी आ सकती है, यह एक बड़ा आर्थिक लाभ होगा। साथ ही, ऊर्जा‑कुशल कंप्यूटिंग का मतलब है कि डेटा सेंटर्स की ऊर्जा खपत कम होगी, जिससे हमारे पर्यावरण पर दबाव घटेगा। मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूँ कि इस तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष मिशन में भी किया जा सकता है, जहाँ माइक्रोग्रैविटी ने पहले ही उल्लेखित ऑर्गनॉइड विकास को तेज़ किया है। यह तथ्य दर्शाता है कि बायो‑इंजीनियरिंग और अंतरिक्ष विज्ञान का संगमन भविष्य की चिकित्सा को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है। लेकिन हमें नैतिक प्रश्नों को भी गंभीरता से लेना होगा, जैसे कि इस तरह की बायोलॉजिकल सिस्‍टम को वाणिज्यिकरण के लिए कैसे नियंत्रित किया जाए। यदि नियमों की कमी रहेगी तो हम अनजाने में दुरुपयोग की घड़ी को घुमा सकते हैं। इसलिए, सरकारी एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रीय बायो‑एथिक्स कमेटियों को मिलकर एक स्पष्ट फ्रेमवर्क तैयार करना चाहिए। इस फ्रेमवर्क में डेटा प्राइवेसी, टिशू मालिकी और एआइ इंटीग्रेशन जैसे मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि भारतीय वैज्ञानिक समुदाय भी इस दिशा में सक्रिय योगदान देगा, क्योंकि हम इस क्षेत्र में काफी पीछे नहीं हैं। हमारे पास कई प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थान हैं जो इस शोध को आगे बढ़ा सकते हैं। यदि विनियमित वातावरण बनाया गया तो निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा और फंडिंग के रास्ते खुलेंगे। अंत में, मैं यही कहूँगा कि यह तकनीक वैज्ञानिक रोमांच को नई परत देती है, और हमें इसे समझदारी से अपनाना चाहिए।

  • Image placeholder

    Ananth Mohan

    अक्तूबर 9, 2025 AT 16:59

    बहुत अच्छा विश्लेषण, इस दिशा में सहयोग आवश्यक है।

  • Image placeholder

    Abhishek Agrawal

    अक्तूबर 9, 2025 AT 22:32

    वास्तव में, यह तकनीक अभी शुरुआती चरण में है; सफलता की गारंटी नहीं है-परंतु इस पर बहुत अधिक आशावाद भी अनुचित हो सकता है।

  • Image placeholder

    Rajnish Swaroop Azad

    अक्तूबर 10, 2025 AT 04:06

    मनुष्य के सपनों की घड़ी अब तेज़ी से धड़क रही है। यह जीवित कंप्यूटर वही छाया है जो हमारे भीतर छिपी हुई संभावनाओं को उजागर करेगा।

  • Image placeholder

    bhavna bhedi

    अक्तूबर 10, 2025 AT 09:39

    भाई ये विज्ञान का जश्न है यह हमें भी गर्व महसूस कराता है चलो इस पर और चर्चा करते हैं

  • Image placeholder

    Vishal Kumar Vaswani

    अक्तूबर 10, 2025 AT 15:12

    क्या आपको नहीं लग रहा कि बड़ी कंपनियां इस तकनीक को अपने नियंत्रण में लाने की साजिश रचा रही हैं?😉 यह केवल एक शुरुआत है, आगे और भी रहस्यमय प्रयोग होने वाले हैं।🛸

  • Image placeholder

    Zoya Malik

    अक्तूबर 10, 2025 AT 20:46

    यहाँ बहुत अधिक हाइपरबोलिया है, वास्तविक वैज्ञानिक मूल्य कम दिख रहा है। कार्यात्मक परिणामों की कमी चिंता का कारण है।

  • Image placeholder

    AMRESH KUMAR

    अक्तूबर 11, 2025 AT 02:19

    भारत को ऐसी तकनीक अपनानी चाहिए, इससे हमारी तकनीकी स्वायत्तता बढ़ेगी 😊. विदेशियों की लत को तोड़ने का यही सही मौका है 🚀.

  • Image placeholder

    Neha Shetty

    अक्तूबर 11, 2025 AT 07:52

    समुदाय के रूप में अगर हम इस breakthrough को साझा करेंगे तो पूरे देश को फायदा होगा। मैं सुझाव दूँगा कि छोटे संस्थान भी सहयोग करें और डेटा शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म तैयार करें। इस तरह हम एक साथ उन्नति करेंगे।

एक टिप्पणी लिखें