उत्तराखंड में नीदरलैंड के मॉडल से शुरू होगी सहकारिता की नई क्रांति

उत्तराखंड में नीदरलैंड के मॉडल से शुरू होगी सहकारिता की नई क्रांति

उत्तराखंड के गांवों में एक शांत लेकिन गहरी क्रांति शुरू हो रही है। डॉ. धन सिंह रावत, राज्य के सहकारिता मंत्री, ने नीदरलैंड के दौरे के बाद घोषणा की कि इस छोटे यूरोपीय देश की आधुनिक कृषि और सहकारी प्रणाली को राज्य में अपनाया जाएगा। ये केवल एक तकनीकी बदलाव नहीं — ये एक ऐसा नया आर्थिक ढांचा है जो गरीब किसान को बाजार का मालिक बना देगा। नीदरलैंड, जहां एक छोटी भूमि पर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य निर्यातक बना है, उसका मॉडल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के लिए बिल्कुल बनाया गया है। दोनों के भौगोलिक समानताएं — छोटी खेती, बर्फीली धरती, और जलवायु की चुनौतियां — इस अनुकरण को और भी तार्किक बनाती हैं।

नीदरलैंड का जादू: छोटी भूमि, बड़ा उत्पादन

राबो बैंक समूह के विशेषज्ञों ने देहरादून में आयोजित कार्यशाला में बताया कि नीदरलैंड में एक किसान अकेले नहीं लड़ता। वह एक सहकारी समिति के साथ जुड़ा होता है, जो बीज, उर्वरक, तकनीक, और बाजार तक का पूरा चक्र संभालती है। फ्लोरीकल्चर — फूलों की खेती — और हार्टीकल्चर — फल-सब्जियों की उन्नत खेती — यहां वैज्ञानिक तरीकों से होती है। एक छोटे से गांव में भी, डेयरी समितियां दूध को ताजगी बनाए रखने के लिए ठंडी श्रृंखला का उपयोग करती हैं। यही वो चीज है जो उत्तराखंड के किसानों को अभी नहीं मिल रही।

डॉ. रावत ने कहा, "हमारे किसान अक्सर बीच में फंस जाते हैं — बीज खरीदने के लिए बैंक के पास, फल बेचने के लिए बाजार के पास। हम उन्हें एक संगठित समूह में जोड़ेंगे, जो खरीद, उत्पादन और बिक्री सब कुछ खुद करे।" यही वो बिंदु है जहां नीदरलैंड का मॉडल काम करता है — सहकारिता एक बाजार के रूप में काम करती है, न कि सिर्फ एक समिति।

2025: उत्तराखंड का सहकारिता वर्ष

मार्च 2025 तक, हर गांव और ग्राम सभा में एक बहुउद्देशीय सहकारी समिति बनेगी। ये समितियां केवल खेती नहीं, बल्कि डेयरी, मत्स्य पालन, शहद, जड़ी-बूटियां, और यहां तक कि जन औषधि केंद्र तक संचालित करेंगी। अभी तक राज्य में 5,530 सहकारी समितियां हैं, और उनमें से 671 का कंप्यूटरीकरण पूरा हो चुका है — देश में पहली बार। ये डेटा अब राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस पर अपलोड है, जिससे ब्याज मुक्त ऋण, सब्सिडी और तकनीकी सहायता सीधे किसान तक पहुंचेगी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजभवन में आयोजित कार्यक्रम में कहा, "हमने उत्तराखंड से ही देश के सभी सहकारी समितियों के कंप्यूटरीकरण की शुरुआत की। अब हम इसे एक जीवंत आर्थिक नेटवर्क में बदल रहे हैं।" फरवरी 2023 से अब तक, 248 नई डेयरी समितियां, 800 पैक्स (पैकेजिंग यूनिट्स), और 116 मत्स्य समितियां गठित की गई हैं। दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना के तहत, किसानों को 5 लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध है।

पांच नए मॉडल: जहां बाजार किसान की ओर आएगा

डॉ. रावत ने पांच नए सहकारी मॉडल की घोषणा की है, जिनका नीदरलैंड से सीधा संबंध है:

  1. डेयरी वैल्यू चेन: दूध को ताजा रखने के लिए कूल लॉजिस्टिक्स, और ब्रांडेड दूध का उत्पादन।
  2. हार्टीकल्चर क्लस्टर: सेब, स्ट्रॉबेरी, और बेमौसमी सब्जियों के लिए टेक्नोलॉजी-आधारित खेती।
  3. ऑर्गेनिक फूड प्रोसेसिंग: राष्ट्रीय सहकारी ऑर्गेनिक सोसायटी के साथ जुड़ी 501 कृषि सहकारी समितियां, जो अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए निर्यात करेंगी।
  4. स्वयं सहायता समूह से सहकारी समिति तक: महिलाओं के ग्रुप्स को ₹5 लाख तक का ब्याजमुक्त ऋण देकर उन्हें सहकारी समिति में बदला जाएगा।
  5. राबो बैंक सहयोग: नीदरलैंड के वित्तीय संस्थान ने उत्तराखंड के लिए एक विशेष फंड घोषित किया है, जिससे छोटे किसानों को कम ब्याज पर ऋण मिलेगा।

क्यों ये बदलाव ज़रूरी है?

कल्पना कीजिए — एक गांव का किसान अपनी सेब की फसल को एक बाजार में बेचता है, लेकिन बीच में 5-6 दलाल लेते हैं। अंत में, वह 30% कम पाता है। नीदरलैंड के मॉडल में, वह सीधे सहकारी समिति के जरिए एक ब्रांडेड पैकेट में अपनी सेब बेचता है — और उसका नाम उसके पैकेट पर छपता है। यही बदलाव उत्तराखंड में आ रहा है।

सहकारिता सचिव दिलीप जावलकर ने कहा, "हमारा लक्ष्य यह नहीं कि किसान को बेहतर दाम मिलें। हमारा लक्ष्य है कि वह खुद दाम तय करे।" यह वही जादू है जो नीदरलैंड ने किया — सहकारिता को एक बाजार बनाया।

क्या आगे क्या होगा?

अगले छह महीनों में, उत्तराखंड के चार जिलों — देहरादून, नैनीताल, उत्तरकाशी और चमोली — में पायलट प्रोजेक्ट शुरू होंगे। नीदरलैंड के विशेषज्ञ राज्य में रहेंगे, और सहकारी समितियों के लिए ट्रेनिंग देंगे। एक बड़ा कदम यह भी है कि भारतीय सहकारी समिति लिमिटेड और उत्तराखंड राज्य सहकारी संघ ने बीज उत्पादन के लिए समझौता किया है। अब राज्य के किसान अपने बीज बेचेंगे — न कि खरीदें।

2025 का अंत तक, उत्तराखंड की सहकारी समितियां अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में जाएंगी। एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है — जहां गरीब किसान अपने उत्पाद का मालिक होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या यह मॉडल छोटे किसानों के लिए वास्तविक लाभ लाएगा?

हां। इस मॉडल में किसान बीच के दलालों से बाहर आ जाता है। उत्तराखंड में अभी भी 70% किसान अपने उत्पाद का सिर्फ 30-40% हिस्सा पाते हैं। नीदरलैंड के मॉडल के अनुसार, यह अंक 75% तक बढ़ सकता है। ब्याज मुक्त ऋण और डेयरी/बागवानी क्लस्टर के माध्यम से आय दोगुनी हो सकती है।

नीदरलैंड के साथ सहयोग का असली फायदा क्या है?

यह सिर्फ पैसा नहीं है। नीदरलैंड के विशेषज्ञ सहकारी समितियों को ट्रेनिंग देंगे, उनके लिए टेक्नोलॉजी डिजाइन करेंगे, और बाजार तक पहुंच देंगे। राबो बैंक ने उत्तराखंड के लिए एक विशेष फंड घोषित किया है, जिसमें छोटे किसानों के लिए ब्याज दर 4% तक रखी जाएगी — जो बैंकों की तुलना में आधी है।

क्या यह सभी गांवों में लागू होगा?

हां, लेकिन तीन चरणों में। मार्च 2025 तक हर गांव में एक बहुउद्देशीय सहकारी समिति बनेगी। अगले छह महीनों में, उनमें से 50% डेयरी या बागवानी के लिए विशेषीकृत होंगे। और 2026 तक, 100 गांवों में निर्यात-क्षमता वाले प्रोडक्ट्स बनेंगे।

महिलाओं को क्या लाभ होगा?

इस योजना में महिलाओं को विशेष जगह दी गई है। स्वयं सहायता समूहों को ₹5 लाख तक का ब्याजमुक्त ऋण दिया जा रहा है, ताकि वे सहकारी समिति बना सकें। उत्तराखंड में 62% सहकारी सदस्य महिलाएं हैं। अब वे न केवल सदस्य बल्कि नेता बनेंगी — डेयरी, शहद और जड़ी-बूटियों के उत्पादन का नेतृत्व करेंगी।

क्या यह योजना भारत के अन्य राज्यों के लिए नकल की जा सकती है?

बिल्कुल। उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य है जिसने सहकारिता को कंप्यूटरीकृत किया है। अगर यह मॉडल सफल होता है, तो यह देश के अन्य पहाड़ी राज्यों — जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, अरुणाचल — के लिए एक नक्शा बन जाएगा। यह न केवल आर्थिक बल है, बल्कि ग्रामीण जीवन की अस्मिता है।

इस बदलाव के लिए कितना खर्च होगा?

राज्य सरकार ने पहले ही ₹2,300 करोड़ का बजट घोषित किया है, जिसमें राबो बैंक के निवेश और राष्ट्रीय योजनाओं की राशि शामिल है। लेकिन असली लाभ लाभांश में है — जिसमें 10,000 से अधिक किसान परिवारों की आय दोगुनी होने की उम्मीद है।