DUSU Election 2025: ABVP ने जीते 4 में 3 पद, आर्यन मान बने अध्यक्ष; NSUI को उपाध्यक्ष

DUSU Election 2025: ABVP ने जीते 4 में 3 पद, आर्यन मान बने अध्यक्ष; NSUI को उपाध्यक्ष

कौन जीता, कितने वोट मिले

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के DUSU Election 2025 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने बड़ा दांव खेलते हुए चार में से तीन शीर्ष पद अपने नाम कर लिए। अध्यक्ष पद पर ABVP के आर्यन मान ने कांग्रेस समर्थित NSUI की जोसेलिन नंदिता चौधरी को हराया। वामदलों के समर्थन वाली AISA-SFI की उम्मीदवार अंजलि 5,385 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं।

उपाध्यक्ष पद पर तस्वीर उलट गई। यहां NSUI के राहुल झांसला ने 29,339 मत हासिल कर निर्णायक जीत दर्ज की, जबकि ABVP के गोविंद तंवा 20,547 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। AISA-SFI के सोहन को 4,163 मत मिले। सचिव पद ABVP के कुनाल चौधरी और सह-सचिव पद ABVP की दीपिका झा ने जीता। यानी टॉप चार में 3-1 का परिणाम ABVP के पक्ष में रहा।

इस बार चुनाव 18 सितंबर 2025 को 52 केंद्रों पर 195 बूथ में हुआ। 711 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVM) लगाई गईं। 2.75 लाख से ज्यादा छात्र मतदाता पात्र थे और अंतिम मतदान प्रतिशत 39.45% दर्ज हुआ। दिन के कॉलेजों में मतदान सुबह 8:30 से दोपहर 1 बजे तक और शाम के कॉलेजों में 3 बजे से 7:30 बजे तक चला। कुल 21 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें से 9 ने अध्यक्ष पद के लिए किस्मत आजमाई।

गिनती के दौरान उत्तर परिसर और प्रमुख कॉलेजों के आसपास सुरक्षा बढ़ाई गई। ड्रोन से निगरानी, ट्रैफिक डायवर्ज़न और अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती ने माहौल को शांत रखा। चुनाव आयोग और विश्वविद्यालय प्रशासन ने संवेदनशील बूथों पर विशेष इंतजाम किए थे ताकि कोई विवाद न हो।

नतीजे आने के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी भी तेज दिखी। NSUI के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने कहा कि NSUI सिर्फ ABVP से नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन, दिल्ली सरकार, केंद्र, RSS-BJP और दिल्ली पुलिस की “संयुक्त ताकत” से लड़ रही थी। दूसरी ओर, ABVP के स्थानीय नेतृत्व ने इसे अपने संगठनात्मक ढांचे और कॉलेज-स्तर पर लगातार बने संपर्क का परिणाम बताया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही विजय जुलूसों पर रोक लगा रखी थी। अदालत ने साफ कहा था कि किसी भी तरह की अव्यवस्था से नए पदाधिकारियों के कामकाज पर असर पड़ेगा। आदेश का पालन हुआ—कैंपस में जश्न तो दिखा, पर बिना जुलूस और बिना हंगामे के।

  • अध्यक्ष: आर्यन मान (ABVP) — जोसेलिन नंदिता चौधरी (NSUI) पर जीत
  • उपाध्यक्ष: राहुल झांसला (NSUI) — ABVP के गोविंद तंवा पर जीत, 29,339 मत
  • सचिव: कुनाल चौधरी (ABVP)
  • सह-सचिव: दीपिका झा (ABVP)

थीम की बात करें तो इस बार जेन्डर रिप्रेजेंटेशन, छात्र कल्याण और कैंपस सुरक्षा सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। हॉस्टल सीटों की कमी, फीस बढ़ोतरी, बस/मेट्रो कंसेशन और रात में लाइब्रेरी की सुविधा जैसे मुद्दों पर हर खेमे ने अपने-अपने वादे सामने रखे। खास बात—महिला उम्मीदवारों की दृश्यता और सुरक्षा को लेकर कैंपस बहस पिछले साल के मुकाबले ज्यादा तेज रही।

यह नतीजे क्या संकेत देते हैं

नतीजे साफ दिखाते हैं कि ABVP की पकड़ अभी भी मजबूत है, पर NSUI की चुनौती टिकी हुई है। अध्यक्ष, सचिव और सह-सचिव पर ABVP का कब्जा संगठनात्मक समन्वय और कॉलेज-स्तरीय नेटवर्किंग की मजबूती बताता है। वहीं उपाध्यक्ष पद पर NSUI की जीत यह संकेत देती है कि उसके संदेश कुछ विशिष्ट कॉलेज समूहों और समाजशास्त्र/मानविकी के छात्र ब्लॉक में बेहतर तरीके से पहुँचे।

2024 के नतीजों से तुलना करें तो उस साल NSUI ने सात साल बाद अध्यक्ष पद जीता था और सह-सचिव भी उसके खाते में गया था, जबकि ABVP ने उपाध्यक्ष और सचिव पद पर कब्जा रखा। 2025 में कहानी पलटी—अध्यक्ष पद ABVP के पास लौट आया और सह-सचिव भी उसी के पास रहा, पर उपाध्यक्ष पर NSUI ने अपना प्रभाव बनाए रखा। यानी दोनों संगठनों ने अपनी-अपनी मजबूत जमीन नहीं छोड़ी, बस शीर्ष पदों का संतुलन बदल गया।

वोटिंग पैटर्न पर नज़र डालें तो 39.45% का टर्नआउट DUSU के औसत रेंज में ही है। यह संकेत देता है कि कैंपस मुद्दों पर छात्रों की दिलचस्पी बनी हुई है, पर बैलेट बॉक्स तक हर छात्र नहीं पहुँच पा रहा। बड़ी यूनिवर्सिटी में क्लास शेड्यूल, इंटर्नशिप, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और दूरी जैसी वजहें भागीदारी पर असर डालती हैं। चुनाव दो शिफ्ट में होना कई छात्रों को लचीलापन देता है, फिर भी ऑफ-कैंपस और इवनिंग कॉलेजों के छात्रों की भागीदारी बढ़ाने के लिए और मेहनत चाहिए।

कैंपस सुरक्षा और जेन्डर-सेंसिटिविटी इस चुनाव के असली टॉपिक्स रहे। कई कॉलेजों ने रात की कक्षाओं, सोसायटी इवेंट्स और लाइब्रेरी टाइमिंग्स के संदर्भ में सुरक्षा गश्त, परिवहन और ICC/पॉक्सो-सम्बंधित जागरूकता की मांग उठाई। छात्र संगठनों ने हॉस्टल अलॉटमेंट की पारदर्शिता, मेस फीस, निजी पीजी की बढ़ती लागत और प्लेसमेंट सहायता पर ठोस रोडमैप देने की कोशिश की। यह एजेंडा वोटिंग बूथ तक गया—और नतीजों में उसकी झलक मिली।

ABVP के लिए अध्यक्ष पद की वापसी प्रतीकात्मक है। यह कॉलेज यूनिट्स से लेकर फैकल्टी-स्तर की सोसायटीज़ तक पैठ का संकेत देती है। सचिव और सह-सचिव जैसे पद संगठनात्मक मशीनरी को चलाने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं—नोटिस, मीटिंग्स, फंडिंग और समन्वय इन्हीं के जिम्मे आता है। इसलिए ये दो पद जीतना ABVP को कामकाज में बढ़त देता है।

NSUI के लिए उपाध्यक्ष पद पर बड़ी जीत सिर्फ सांकेतिक नहीं है। यह कैंपस-टू-कैंपस माइक्रो-कैम्पेनिंग और इश्यू-बेस्ड कम्युनिकेशन का असर दिखाती है। चुनाव अभियानों में छात्रवृत्ति, परिवहन छूट और मानसिक स्वास्थ्य समर्थन जैसे विषयों पर केंद्रित संदेश कुछ समूहों में बेहतर गूंजे—उपाध्यक्ष का नतीजा यह बताता है।

वाम-समर्थित AISA-SFI ने इस बार शीर्ष चार में जगह नहीं बनाई, पर वोट शेयर ने यह दिखाया कि वैचारिक कैंपेनिंग का एक स्थायी स्पेस मौजूद है। फीस, असमानता, और कैंपस लोकतंत्र की बहस—इन पर उनकी उपस्थिति विमर्श को धक्का देती है, भले पद न मिले।

इलेक्शन मैनेजमेंट की बात करें तो EVM, CCTV और ड्रोन निगरानी ने प्रक्रिया को सुचारु रखा। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग और कॉलेज गेट्स पर चेकिंग ने फेक पोस्टर्स, एंट्री-एग्जिट विवाद और धक्कामुक्की के जोखिम घटाए। हाई कोर्ट की रोक के कारण नतीजों के बाद भीड़भाड़ नहीं हुई—यह अगली कार्यवाही को बिना व्यवधान शुरू करने के लिए जरूरी था।

अब आगे क्या? नए पदाधिकारी जल्दी ही छात्र प्रतिनिधिमंडलों से मिलकर प्राथमिक एजेंडा तय करेंगे—हॉस्टल सीट बढ़ाना, रात तक लाइब्रेरी, सेफ ट्रांसपोर्ट, और परीक्षा-शेड्यूल में पारदर्शिता जैसे मुद्दे सबसे ऊपर रहेंगे। विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ पहली औपचारिक बैठकें यहीं से दिशा तय करेंगी। छात्र संगठनों के लिए यह वह समय है जब पोस्टर और नारे नीति और प्रक्रिया में बदले जाते हैं—MOUs, कमेटियाँ और टाइम-बाउंड एक्शन प्लान में।

दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति को देश की “फीडर पॉलिटिक्स” माना जाता है। यहां का नेतृत्व आगे चलकर राष्ट्रीय पार्टियों के संगठनों में दिखता है। इसलिए DUSU के नतीजे सिर्फ कैंपस तक सीमित नहीं रहते—यहें से बनने वाले चेहरों और मुद्दों का असर राजधानी की राजनीति और युवा एजेंडा पर पड़ता है। 2025 के नतीजे बताते हैं कि मुकाबला कड़ा है, संगठन मजबूत हैं और मुद्दे ठोस हैं—यानी आने वाला शैक्षणिक वर्ष बहस और नीति, दोनों मोर्चों पर व्यस्त रहेगा।