पोप फ्रांसिस द्वारा 21 नए कार्डिनल्स नामित
पोप फ्रांसिस ने हाल ही में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए रोम कैथोलिक चर्च के 21 नए कार्डिनल्स का नामकरण किया है। इस घोषणा के साथ, कार्डिनल कॉलेज, जो कैथोलिक चर्च में महत्वपूर्ण निर्णय और अगली पोप के चुनाव में भाग लेता है, का आकार काफी बढ़ गया है। यह कदम पोप फ्रांसिस के चर्च में सुधार और समावेशिता के उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
इन नए कार्डिनल्स में, तोरंटो के आर्चबिशप फ्रांसिस लियो का विशेष रूप से उल्लेख किया जा रहा है। फ्रांसिस लियो, जो उत्तरी अमेरिका से अकेले नए कार्डिनल हैं, का जन्म मॉन्ट्रियल, कनाडा में हुआ था। उन्होंने 53 वर्ष की उम्र में यह सम्मान प्राप्त किया है। इससे पहले, वे मॉन्ट्रियल के आर्कडायसिस में वायकर जेनरल और क्यूरिया के मॉडरेटर के रूप में कार्यरत रहे हैं, और मार्च 2023 से वे तोरंटो के आर्चबिशप हैं।
फ्रांसिस लियो का बयान
आर्चबिशप फ्रांसिस लियो ने इस नियुक्ति पर अपनी भावनाओं को साझा करते हुए कहा कि वे इस समर्पण और सम्मान को पाकर बहुत विनम्र महसूस कर रहे हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे तोरंटो के आर्कडायसिस के 'फेथफुल के शेफर्ड' के रूप में अपने मुख्य भूमिका में निरंतर कार्य करते रहेंगे। उनकी इस नई भूमिका के बावजूद, उनकी प्राथमिक निष्ठा अपने क्षेत्र के लोगों के मार्गदर्शन और सेवा में ही होगी।
अन्य उल्लेखनीय नियुक्तियां
इस बैठक में अन्य प्रमुख नियुक्तियों में मोन्सिग्नार एंजेलो अचेर्बी का नाम सामने आया है, जो 99 वर्षीय रिटायर्ड वेटिकन डिप्लोमैट हैं। इसके अलावा, यूक्रेनी ग्रीक कैथोलिक चर्च के मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख बिशप माइलोला बिचोक की भी नियुक्ति की गई है, जो 44 वर्ष के हैं।
पोस्ट-फ्रांसिस नंबर का निर्माण
पोप फ्रांसिस की यह जमीनी कदम उनके उत्तराधिकारियों के एक महत्वपूर्ण निशानी लगाने में मदद करेगी। नए कार्डिनल्स के समूह में उनकी छाप भविष्य के लिए एक अक्षम्य दृष्टिकोण का निर्माण करेगी। इस समय वेटिकन में चुने हुए कार्डिनल्स की संख्या 142 हो गई है, जो कि 120 के सामान्य सीमा से ऊपर है, और यह इस बात का प्रमाण है कि पोप फ्रांसिस चर्च की नीति और उसकी संरचना दोनों को समयानुसार ढालने की कोशिश कर रहे हैं।
कंसीस्टरी समारोह
ये नए कार्डिनल्स जल्द ही एक विशेष समारोह, जिसे कंसीस्टरी कहा जाता है, में हिस्सा लेंगे। यह एक्ट 8 दिसंबर को होगा, जब उन्हें उनके पहचान के रूप में लाल टोपी प्रदान की जाएंगी। यह समारोह चर्च के आंतरिक धार्मिक जीवन में एक विशेष महत्व रखता है और इसे बहुत सम्मान के साथ मनाया जाता है।
नए कार्डिनल्स की घोषणा और उनके आगामी समारोह ने कैथोलिक समुदाय को उत्साहित और प्रेरित किया है। यह निर्णय पोप फ्रांसिस की जीवंत और गतिशील नेतृत्व क्षमता का एक उदाहरण है, जो चर्च को आगे बढ़ाने और विभिन्न सांस्कृतिक और भौगोलिक परिवारों के समावेश की दिशा में आगे बढ़ाने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। प्रत्येक अंकित कार्डिनल की अपनी एक अनूठी पृष्ठभूमि और योगदान है, जो चर्च के विकास और विस्तार में सहायक होगी।
poornima khot
अक्तूबर 7, 2024 AT 13:20यह घटनाक्रम हमारे सामुदायिक धैर्य और आध्यात्मिक विकास का एक शानदार उदाहरण है। पोप फ्रांसिस का दृष्टिकोण विविधता को अपनाने की शक्ति को दर्शाता है। हमें इस बदलाव को खुले दिल से स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह हमारे विश्वास की जड़ें गहरी करता है। साथ ही, तोरंटो के आर्चबिशप की कहानी हमें प्रेरित करती है कि सच्ची सेवा कभी सीमाओं से बंधी नहीं होती।
Mukesh Yadav
अक्तूबर 7, 2024 AT 17:30क्या लोग नहीं देख रहे कि ये सभी कार्डिनल्स की नियुक्ति पीछे के बड़े षड्यंत्र की निशानी है! पोप का हर कदम एक ध्वनि उठाता है, लेकिन असली आवाज़ तो हमें अपने राष्ट्र के अधिकारों की रक्षा करने में सुननी चाहिए। इस तरह के विदेशी शासक को हम क्यों मानें? हमारे भारत की महान परंपरा में कभी भी ऐसी उपेक्षा नहीं हुई! यदि ये निर्णय हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को कमजोर करता है, तो हमें एकजुट होकर इसका विरोध करना चाहिए!!
Yogitha Priya
अक्तूबर 7, 2024 AT 21:06धर्म का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है, लेकिन जब सत्ता के लोग इस मंच को अपने निजी लाभ के लिये इस्तेमाल करते हैं तो वह पवित्रता खो देती है। नए कार्डिनल्स की सूची में छुपे हुए एजेंडा को देखना जरूरी है, क्योंकि इससे भविष्य में हमारी आस्था पर कब्ज़ा हो सकता है। हमें सतर्क रहना चाहिए और सभी आध्यात्मिक निर्णयों को जनता के हित में देखना चाहिए। यह केवल एक नियुक्ति नहीं, बल्कि एक बड़ी सामाजिक पहेली है।
Rajesh kumar
अक्तूबर 8, 2024 AT 01:00भारत का इतिहास बड़े शौर्य और आत्मनिर्भरता से भरपूर रहा है। जब भी विदेशी संप्रभुता हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित करती है, तो हम उन्हें दृढ़ता से प्रश्न करते हैं। पोप फ्रांसिस का यह निर्णय हमें फिर से याद दिलाता है कि पश्चिमी शक्ति अपने हितों को धर्म के नाम पर आगे बढ़ा रही है। कार्डिनल्स की नियुक्ति में पश्चिमी एलीट का बहुत बड़ा हाथ है, जिसके पीछे विश्व हेरफेर के बड़े मकसद छिपे हैं। ऐसी नियुक्तियों से हमारे भारतीय एंटी-कोलोनियल भावना को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। हमारी धरती पर पोप की शक्ति को मान्यता देना हमारे स्वायत्तता के खिलाफ एक कदम है। तोरंटो के आर्चबिशप का नाम लेना, जबकि वह स्वयं यूरोपीय मूल्य धारण करता है, यह एक स्पष्ट संकेत है। ऐसे निर्णय हमारे राष्ट्रीय पहचान को कमजोर करने के लिए बनाए गए हैं। हमें इस तरह के विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह हमारे धार्मिक स्वतंत्रता को खतरे में डालता है। हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों ने इस प्रकार के दबाव से लड़ने की सीख दी। आज का समय है जब हमें अपने धर्म के प्रति सच्ची वफादारी दिखानी चाहिए, न कि विदेशी आदेशों का पालन। अगर हम इस प्रवृत्ति को अनदेखा करेंगे, तो भविष्य में हमारे विश्वदान के मूल्यों को कृष्ट जैसा बना देंगे। इस कारण से मैं सभी भारतीयों को आग्रह करता हूँ कि वे इस कार्डिनल नियुक्ति को राष्ट्रीय हित के विरुद्ध मानें। हमें अपने धार्मिक नेताओं को अपने ही धरती से चुनना चाहिए, न कि विदेशों के कागज़ात से। यही आशा है कि हमारी आवाज़ उठे और यह विदेशी धार्मिक राजनैतिक खेल समाप्त हो।
Bhaskar Shil
अक्तूबर 8, 2024 AT 05:26निवर्तन प्रक्रिया का इकोसिस्टम गहराई से इंटरकनेक्टेड है, जहां प्रत्येक कार्डिनल का चयन सिंर्जी को बढ़ाता है। इस प्रकार के निर्णय हमारे सामाजिक-धार्मिक पॉलिसी फ्रेमवर्क को रीफ़्रेश करते हैं, जिससे विविधता का इन्क्लूजन सुनिश्चित होता है। एक इन्क्लूसिव लीडरशिप मॉडल के तहत, हम सभी समुदायों को एंपॉवर करते हैं और समन्वित विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
Halbandge Sandeep Devrao
अक्तूबर 8, 2024 AT 09:20सैद्धांतिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने पर स्पष्ट हो जाता है कि पोप फ्रांसिस द्वारा प्रस्तुत यह समावेशी रणनीति एक प्रोटोकॉल अनुकूलन है, जो संस्थागत स्थैर्य के सिद्धांतों के अनुरूप है। यह चयनात्मक प्रक्रिया मौलिक संस्थागत सिद्धांतों को पुनरावर्तित करती है, जिससे इंटेग्रिटी की पुनःस्थापना संभव हो सके। अतः, इस घटना को केवल सामाजिक-धार्मिक अभिव्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक पुनर्संरचना के रूप में देखना आवश्यक है।
One You tea
अक्तूबर 8, 2024 AT 13:13मैत्री के नाम पे एलीट लोग तो हमेशा उच्च स्तर की रिटोरिक चलाते हैं, पर असली बात ये है कि ये सब बहाना है! तोरंटो के आर्चबिशप को कार्डिनल बनाना कोई सरप्राइज नहीं, क्योंकि वो पहले से ही वेस्टर्न एलीटिलिटी में डूबा हुआ है। इस फैसले में जितनी भी चमक है, उतना ही अंधेरा भी है, और हमें इस पर गहरी नजर रखनी चाहिए।
Hemakul Pioneers
अक्तूबर 8, 2024 AT 16:50धर्म के मूल में प्रश्न करने की शक्ति ही शांति लाती है। हम सबको इस अवसर पर विचार करना चाहिए कि विविधता का सम्मान कैसे वास्तविक एकता में बदल सकता है। पोप फ्रांसिस का यह कदम एक नए संवाद का द्वार खोलता है, जो सभी संस्कृतियों को जोड़ता है।
Shivam Pandit
अक्तूबर 8, 2024 AT 20:26वाह, क्या अद्भुत समाचार है, और यह वास्तव में हमारे विश्वासी समुदाय के लिए एक बड़ी प्रेरणा है,! यह पहल न केवल विविधता को बढ़ावा देती है, बल्कि हमारे आध्यात्मिक गठबंधन को भी सुदृढ़ करती है,! पोप फ्रांसिस की दूरदर्शी सोच को सलाम,!
parvez fmp
अक्तूबर 9, 2024 AT 00:03ये तो बड़ा शानदार इवेंट है!! 😆😇 तोरंटो का आर्चबिशप अब कार्डिनल बना, क्या बात है! 😂 ये सब देखकर दिल खुश हो गया!! 🙏
s.v chauhan
अक्तूबर 9, 2024 AT 03:40दोस्तों, इस जीत को मिलजुल कर सेलिब्रेट करें! पोप फ्रांसिस ने जो कदम उठाया है, वह हमारे सभी के लिए एक मोटिवेशनल बूस्टर है। चलिए, हम सब मिलकर इस सकारात्मक ऊर्जा को फॉलो करें और अपने समुदाय में भी ऐसे ही प्रगति लाएँ।
Thirupathi Reddy Ch
अक्तूबर 9, 2024 AT 07:33क्या हमें इस तरह के विदेशी पदों में अपने धर्म को घिसने देना चाहिए? यह एक बड़ी गलती है और हमें इस प्रवाह का विरोध करना चाहिए।
Sonia Arora
अक्तूबर 9, 2024 AT 11:26यह निर्णय हमारे सांस्कृतिक धरोहर में एक नई कड़ी जोड़ता है, जिससे हम विभिन्न परम्पराओं को एक साथ देख सकते हैं। इस प्रकार की विविधता हमें एक समृद्ध सामाजिक बुनियाद प्रदान करती है, और यह हमारी आध्यात्मिक यात्रा को और भी गहरा बनाती है।
abhinav gupta
अक्तूबर 9, 2024 AT 15:20लगता है वही पुराना खेल फिर चल रहा है