प्रशांत किशोर का अनुमान: 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 300 सीटें मिलने की संभावना, पीएम मोदी के खिलाफ व्यापक गुस्सा नहीं

प्रशांत किशोर का अनुमान: 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 300 सीटें मिलने की संभावना, पीएम मोदी के खिलाफ व्यापक गुस्सा नहीं

राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत किशोर ने हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में 2024 के लोकसभा चुनावों के संभावित परिणामों पर अपनी राय व्यक्त की है। उनका मानना है कि आगामी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 2019 के प्रदर्शन के समान लगभग 300 सीटें मिलने की संभावना है।

किशोर के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देश भर में कोई व्यापक गुस्सा या असंतोष नहीं दिखाई दे रहा है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के उत्तर और पश्चिम क्षेत्रों में अपने गढ़ों को बरकरार रखने की उम्मीद है, जबकि दक्षिण और पूर्व क्षेत्रों में पार्टी के सीटों के हिस्से में वृद्धि होने की संभावना है।

उत्तर और पश्चिम में बीजेपी को नुकसान नहीं

प्रशांत किशोर का मानना है कि उत्तर और पश्चिम के राज्यों में बीजेपी को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। इन क्षेत्रों में पार्टी पहले से ही मजबूत स्थिति में है और अपनी सीटें बरकरार रखने में सक्षम होगी। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन 2019 के स्तर के आसपास रहने की उम्मीद है।

पूर्व और दक्षिण में वोट शेयर बढ़ने के आसार

हालांकि, किशोर का कहना है कि पूर्व और दक्षिण के राज्यों में बीजेपी के वोट शेयर में वृद्धि हो सकती है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में पार्टी अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रही है। इन क्षेत्रों में बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार से उसके समग्र सीट tally को बढ़ावा मिल सकता है।

विपक्ष के लिए चुनौतियां

प्रशांत किशोर ने कहा कि विपक्षी दलों के लिए बीजेपी को टक्कर देना एक बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट होकर एक मजबूत विकल्प प्रस्तुत करना होगा। हालांकि, विपक्ष में वर्तमान में ऐसी कोई ठोस रणनीति या नेतृत्व नहीं दिखाई दे रहा है जो बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सके।

आर्थिक मुद्दे और रोजगार चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं

किशोर ने यह भी कहा कि आर्थिक मुद्दे और रोजगार की समस्या आगामी चुनावों में अहम भूमिका निभा सकते हैं। महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक सुस्ती जैसे मुद्दों पर सरकार की नीतियों की आलोचना हो रही है। यदि विपक्ष इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाता है, तो वह बीजेपी को कुछ हद तक नुकसान पहुंचा सकता है।

हालांकि, प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ एक प्रारंभिक अनुमान है और चुनाव परिणाम कई कारकों पर निर्भर करेंगे। उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में राजनीतिक घटनाक्रम और जनता का मूड देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल, बीजेपी 2024 के चुनावों के लिए मजबूत स्थिति में नजर आ रही है और विपक्ष को उसे टक्कर देने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

15 टिप्पणि

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    arun great

    मई 22, 2024 AT 18:21

    प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी में उपयोग किए गए आँकड़ों की वैधता विश्लेषणात्मक परिप्रेक्ष्य से देखी जाए तो काफी सम्मोहक लगती है। वर्तमान में बीजेपी का वोट शेयर राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 45% के आसपास स्थिर है और यह आंकड़ा पिछले दो चुनावों से तुलनीय है। हालांकि, आर्थिक संकेतकों में गिरावट और महंगाई के दबाव को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता, ये पहलू संभावित रूप से मतदाताओं के मतदान व्यवहार को पुनः परिभाषित कर सकते हैं।
    उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, यदि विपक्ष को प्रभावी ढंग से अपने आर्थिक एजेंडा को प्रस्तुत करने में सफलता मिलती है तो सीटों की गणना में मामूली परिवर्तन संभव है।🔎📊 अंततः, यह कहना उचित होगा कि 300 सीटों का अनुमान एक वैध परिदृश्य ही नहीं, बल्कि कई संभावित वेरिएबल्स के साथ एक बहुआयामी मॉडल भी है।

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    Anirban Chakraborty

    मई 23, 2024 AT 05:28

    भाई, इस तरह के अनुमान अक्सर खुद मोदी के करिश्मा को बढ़ा‑चढ़ा कर पेश करते हैं। गढ़ी हुई आँकड़ों पर भरोसा करके मतदाता को भ्रमित करना आसान काम है, पर असली दिमाग वाले लोग ये सब देख लेते हैं। अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तो कम से कम 20‑30 सीटें तो छीने जा सकते हैं, बस योजना चाहिए।

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    Krishna Saikia

    मई 23, 2024 AT 16:35

    देशभक्तों को ये समझना चाहिए कि भारत की जीत में बीजेपी का योगदान अपरिहार्य है और किसी भी तरह की विफलता का दायरा केवल विरोधी दलों में ही है। राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए हमें एकजुट रहना चाहिए, अन्यथा भेदभाव और अस्थिरता ही बचेगी।

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    Meenal Khanchandani

    मई 24, 2024 AT 03:41

    भारी राजनैतिक खेल है ये।

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    Anurag Kumar

    मई 24, 2024 AT 14:48

    सभी को नमस्ते, मेरे हिसाब से चुनाव के परिणाम सिर्फ आंकड़ों से नहीं, बल्कि लोगों के दिलों की जुड़ाव से तय होते हैं। अगर विधायक लोग जमीन से जुड़कर काम करेंगे तो किसी भी पार्टी की जीत पक्की हो जाएगी। बस यही मेरा छोटे‑बड़े रुख है।

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    Prashant Jain

    मई 25, 2024 AT 01:55

    तुम्हारे ऊपर लिखे ऐसे आशावादिक विचार तो बुक्का बन गए हैं, वास्तविकता में तो बहुत कुछ बदल रहा है। भाजपा के गढ़ अभी भी मजबूत हैं, पर मतदाता का मूड बदल रहा है।

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    DN Kiri (Gajen) Phangcho

    मई 25, 2024 AT 13:01

    ध्यान दो, जनता के दिलों में जो बदलाव आ रहा है वह सिर्फ आंकड़ों से नहीं मापी जा सकती। हमें समझना चाहिए कि हर वोट का अपना कारण होता है और वही कारण राजनीति को दिशा देता है।

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    Yash Kumar

    मई 26, 2024 AT 00:08

    मैं तो कहूँगा कि अगर हर बार ऐसे ही अनुमान लगाते रहेंगे तो राजनीति एक सर्कस बन जाएगी। डेटा तो है, पर उसकी व्याख्या हर कोई अपना‑अपना कर लेता है।

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    Aishwarya R

    मई 26, 2024 AT 11:15

    सभी को पता है कि इस तरह के प्री‑डिक्शन अक्सर सट्टा बनकर बाहर आते हैं, लेकिन फिर भी लोग सुनते रहते हैं। इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि वास्तविकता में कई अनदेखे कारक होते हैं।

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    Vaidehi Sharma

    मई 26, 2024 AT 22:21

    विचारों की गहराई को समझना जरूरी है, नहीं तो हम सब एक ही धुन में गाएंगे 😊👍

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    Jenisha Patel

    मई 27, 2024 AT 09:28

    सबसे पहले तो यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि चुनावी परिणामों की भविष्यवाणी में कई जटिल कारक सम्मिलित होते हैं; इनमें सामाजिक‑आर्थिक स्थितियों, चुनावी नीति‑निर्माण, स्थानीय नेतृत्व, तथा जनसंख्या‑विकृति प्रमुख हैं; अर्थात् केवल राष्ट्रीय स्तर पर बड़े आँकड़े देखकर अनुमान लगाना अत्यंत कठोर और अधूरा विश्लेषण है; दूसरी बात, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि प्रमुख गढ़ों में भाजपा की पैठ ऐतिहासिक रूप से मजबूत रही है, परन्तु किसी भी क्षण में स्थानीय मुद्दे जैसे बेरोजगारी, कृषि संकट, या सामाजिक तनाव ऐसा मोड़ बना सकते हैं जहाँ मतदाता अपनी प्राथमिकता बदल दे; तीसरे बिंदु के रूप में, विपक्षी दलों की एकजुटता और उनके विकेन्द्रीकृत गठबंधन की प्रभावशीलता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता; यदि कांग्रेस, वीजीएएस, और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों ने सामूहिक रणनीति बनाई और स्पष्ट संदेश दिया, तो सीटों की संख्या में अंतर स्पष्ट रूप से दिखेगा; चौथा तत्त्व यह है कि एक निरपेक्ष डेटा‑आधारित मॉडल को उपयोग करते समय विभिन्न सैंपलिंग त्रुटियों एवं सर्वेक्षण की विश्वसनीयता को ध्यान में रखना आवश्यक है; इसके अतिरिक्त, मतदाता व्यवहार में भावनात्मक प्रवृत्तियां, जैसे राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक पहचान, और नेतृत्व की छवि, भी परिणामों पर भारी प्रभाव डालती हैं; पाँचवाँ, मीडिया और सामाजिक मंचों पर होने वाली चर्चा एवं ट्रेंड भी मतदाताओं की राय को आकार देते हैं, इसलिए उन्हें मॉडलिंग में सम्मिलित किया जाना चाहिए; अंत में, यह कहा जा सकता है कि 300 सीटों का अनुमान कुछ हद तक यथार्थवादी है, परन्तु यह एक अस्थिर बिंदु है जिसे कई अनिश्चितताओं के साथ समझा जाना चाहिए; इस प्रकार, हम निष्कर्ष निकालते हैं कि भविष्य की अनिश्चितता के कारण, केवल एक व्यापक और बहु‑आयामी दृष्टिकोण से ही सही भविष्यवाणी संभव है।

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    Ria Dewan

    मई 27, 2024 AT 20:35

    ओह, तो आप कहते हैं कि मोदी को विरोध नहीं मिलेगा, पर फिर भी हर साल धुंधली धुंधली आवाज़ें आती रहती हैं। यह वैसा ही है जैसा एक भूतिया थ्योरी को कहते‑हैं, सुनते तो रहो, पर सच में लागू नहीं होता।

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    rishabh agarwal

    मई 28, 2024 AT 07:41

    ऐसे अनुमान अक्सर हमारे विचारों को स्थिर कर देते हैं, जबकि वास्तविकता तो हमेशा बदलती रहती है। इसलिए, हमें खुले दिमाग से देखना चाहिए कि कौन‑सी दिशा में राजनीति मोड़ लेगी।

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    Apurva Pandya

    मई 28, 2024 AT 18:48

    भाई, आंकड़े तो दिखा रहे हैं कि बीजेपी का आधार अभी भी मजबूत है, फिर भी हमें सतर्क रहना चाहिए क्योंकि राजनैतिक आँकड़े तेज़ी से बदलते हैं। 😐

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    Nishtha Sood

    मई 29, 2024 AT 05:55

    आशा है कि सभी पक्ष मिलकर एक सकारात्मक दिशा में काम करेंगे, ताकि देश का भविष्य उज्जवल हो।

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